महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति
कवि! वह कविता जिसे छोड़ करचले गए तुम, अब वह सरिताकाट रही है प्रान्त-प्रान्त कीदुर्दम कुण्ठा--जड़ मति-कारामुक्त देश के नवोन्मेष केजनमानस की होकर धारा।
काल जहाँ तक प्रवहमान है और जहाँ तक दिक-प्रमान है गए जहाँ तक वाल्मीकि हैं गए जहाँ तक कालिदास हैं वहाँ-दूर तक प्रवहमान ...
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