मित्रता का बोझ किसी पहाड़-सा टिका था कर्ण के कंधों परपर उसने स्वीकार कर लिया था उसे किसी भारी कवच की तरहहाँ, कवच ही तो, जिसने उसे बचाया था हस्तिनापुर की जनता की नज़रों के वार सेजिसने शांत कर दिया था द्रौणाचार्य और पितामह भीष्म कोउस दिन वह अर्जुन से युद्ध तो नहीं कर पायापर सारथी पुत्र राजा बन गया था...
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