राजेश्वर वशिष्ठ साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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कुंती की याचना

मित्रता का बोझ किसी पहाड़-सा टिका था कर्ण के कंधों परपर उसने स्वीकार कर लिया था उसे किसी भारी कवच की तरहहाँ, कवच ही तो, जिसने उसे बचाया था हस्तिनापुर की जनता की नज़रों के वार सेजिसने शांत कर दिया था द्रौणाचार्य और पितामह भीष्म कोउस दिन वह अर्जुन से युद्ध तो नहीं कर पायापर सारथी पुत्र राजा बन गया था...

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वाल्मीकि से अनुरोध

महाकवि वाल्मीकि उपजीव्य है आपकी रामायणतुलसी से लेकर न जाने कितने हीप्रतिभावान कवियों ने अपने विवेक और मेधा सेइसे रचा है बार बाररामायण की कथा कितने ही रंगों और सुगंधों के साथबन गई है मानव जन जीवन का हिस्साहे आदि-कवि तुम्हें प्रणाम!महाकवि, मैं कवि नहीं हूँमुझमें बहुत सीमित है मेधा और विवे...

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जानकी के लिए

मर चुका है रावण का शरीर स्तब्ध है सारी लंकासुनसान है किले का परकोटाकहीं कोई उत्साह नहींकिसी घर में नहीं जल रहा है दियाविभीषण के घर को छोड़ कर।
सागर के किनारे बैठे हैं विजयी रामविभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुएताकि सुबह हो सके उनका राज्याभिषेकबार बार लक्ष्मण से पूछते हैं अपने सहयोगियों की कुशल क्...

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उर्मिला

टिमटिमाते दियों सेजगमगा रही है अयोध्यासरयू में हो रहा है दीप-दानसंगीत और नृत्य के सम्मोहन में हैंसारे नगरवासीहर तरफ जयघोष है ----अयोध्या में लौट आए हैं राम!अंधेरे में डूबा है उर्मिला का कक्षअंधेरा जो पिछले चौदह वर्षों सेरच बस गया है उसकी आत्मा मेंजैसे मंदिर के गर्भ-गृह मेंजमता चला जाता है सुरमई ध...

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ओम ह्रीं श्री लक्ष्म्यै नमः

हमारे घर में पुस्तकें ही पुस्तकें थींचर्चा होती थी वेदों, पुराणों और शास्त्रों कीराम चरित मानस के साथ पढ़ी जाती थीचरक संहिता और लघु पाराशरीहम उन ग्रंथों को सम्भालने में ही लगे रहते थे!घर में अक्सर खाली रहता थाअनाज का भंडारपिता की जेबों मेंशायद ही कभी दिखते थे हरे हरे नोटपर हमें भूखा नहीं रहना पड़...

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एक पगले नास्तिक की प्रार्थना 

मुझे क्षमा करना ईश्वरमुझे नहीं मालूम कि तुम हो या नहींकितने ही धर्मग्रंथों मेंकितनी ही आकृतियों और वेशभूषाओं मेंनज़र आते हो तुमयहाँ तक कि कुछ का कहना हैनहीं है तुम्हारा शरीर
अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ ईश्वरअगर तुम्हारा शरीर ही नहीं हैतो तुम कर ही नहीं पाओगे प्रेमऔर अगर तुम्हारा शरीर हैतो बहुत सा...

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कृतज्ञ हूँ महामाया

अपनी कक्षाओं में घूम रहे हैं असंख्य ग्रह और उपग्रह जुगनुओं की तरह चमक रहे हैं तारे आकाश गंगा के बीच तुम्हें खोजता चला जा रहा हूँ मैंजैसे कोई साधक जाता है देवालय अपने आराध्य की अर्चना के लिए! रत्नजड़ित अलौकिक पीताम्बरी को सम्भाले तुम बिखेर रही हो अपनी कृपा.मुस्का...

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राजेश्वर वशिष्ठ का जीवन परिचय