निर्मम कुम्हार की थापी सेकितने रूपों में कुटी-पिटी,हर बार बिखेरी गई, किन्तुमिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए,सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए,यों तो बच्चों की गुड़िया-सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या,आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए,फसलें उगत...
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