मोर मुकट पीताम्बर पहने,जबसे घनश्याम दिखासाँसों के मनके राधा ने, बस कान्हा नाम लिखाराधा से जब पूँछी सखियाँ, कान्हा क्यों न आतामैं उनमें वो मुझमे रहते, दूर कोई न जाताद्वेत कहाँ राधा मोहन में, यों ह्रदय में समायाजग क्या मैं खुद को भी भूली, तब ही उसको पाया।
वो पहनावे चूड़ी मोहे,बेंदी भाल लगावेरोज श्य...
पूरा पढ़ें...