मैं रामलुभाया के घर पहुँचा तो देख कर चकित रह गया कि वह बोतल खोल कर बैठा हुआ था।
"यह क्या रामलुभाया !'' मैंने कहा, "तुम तो मदिरा के बहुत विरोधी थे।'"
"विरोधी तो अब भी हूँ; किंतु क्या करूं । इस वर्ष भी आचार्य ने मुझे पुरस्कार नहीं दिया।"
"तो तुम मदिरा पीने बैठ गए ?''
‘‘गम तो गलत कर...
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