हड्डियों में बस गई है पीर।
पाँव में काँटा लगा जैसेजो बढ़ते क़दम को रोकेमगर इस का क्या करूँजो गई मेरी हड्डियों को चीर।
दुख की रात का होता सवेरामगर इस का हर घडी डेराकौन से मनहूस पल मेंकिसी दुश्मन ने लिखी तक़दीर।
क्या सजा है इस जनम कीया इस जनम में पाले भरम कीख़्वाहिशों के पाँव में बाँधीकिस ने दु:...
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