डॉ सुधेश साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 6

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मैंने लिखा कुछ भी नहीं | ग़ज़ल

मैंने लिखा कुछ भी नहींतुम ने पढ़ा कुछ भी नहीं ।
जो भी लिखा दिल से लिखाइस के सिवा कुछ भी नहीं ।
मुझ से ज़माना है ख़फ़ामेरी ख़ता कुछ भी नहीं ।
तुम तो खुदा के बन्दे होमेरा खुदा कुछ भी नहीं ।
मैं ने उस पर जान दीउस को वफ़ा कुछ भी नहीं ।
चाहा तुम्हें यह अब कहूँलेकिन कहा कुछ भी नहीं ।
यह तो नज़र क...

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सामने गुलशन नज़र आया | ग़ज़ल

सामने गुलशन नज़र आयागीत भँवरे ने मधुर गाया ।फूल के संग मिले काँटे भीज़िन्दगी का यही सरमाया ।उन की महफ़िल में क़दम मेरामैं बडी गुस्ताखी कर आया ।आँख में भर कर उसे देखा फिर रहा हूँ तब से भरमाया ।चोट ऐसी वक्त ने मारीगीत होंठों ने मधुर गाया ।धुंध ऐसी सुबह को छाईशाम का मन्जर नज़र आया ।आँख टेढ़ी जब हुई ...

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डॉ॰ सुधेश के मुक्तक

प्राण का पंछी सवेरे क्यों चहकता है शबनम बूँद से नया बिरवा लहकता है हड्डियों के पसीने से इसे सींचा है फूल मेरे चमन का ज़्यादा महकता है ।
हम ग़म खाते हैं आँसू पीते हैं केवल अपने ही लिए न जीते हैं मानवता की भी पहचान हमें है हम रिश्तों में ही मरते जीते हैं ।
दर्द का चिर संग है तो रहे कौन कैसे उसे ब...

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पीर

हड्डियों में बस गई है पीर।
पाँव में काँटा लगा जैसेजो बढ़ते क़दम को रोकेमगर इस का क्या करूँजो गई मेरी हड्डियों को चीर।
दुख की रात का होता सवेरामगर इस का हर घडी डेराकौन से मनहूस पल मेंकिसी दुश्मन ने लिखी तक़दीर।
क्या सजा है इस जनम कीया इस जनम में पाले भरम कीख़्वाहिशों के पाँव में बाँधीकिस ने दु:...

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डॉ सुधेश के दोहे

हिन्दी हिन्दी कर रहे 'या-या' करते यार। अंगरेजी में बोलते जहां विदेशी चार॥
मुख पोथी ही नहीं है दर्पण है साकार।इस पोथी में झांकता अपना मुख सँसार॥
पाकी भी नापाक है हिंसा जिस का धर्म। गैरों से है दुश्मनी करता रोज कुकर्म॥
बांस की है बांसुरी शहदीली है तान। तन को छिदवाये बिना कैसे निकल...

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डॉ सुधेश की ग़ज़लें

डॉ सुधेश दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिन्दी के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त हैं। आप हिंदी में विभिन्न विधाओ में सृजन करते हैं। यहाँ आपकी ग़ज़लेंसंकलित की गई हैं।

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डॉ सुधेश का जीवन परिचय