आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँ ही यह संध्याभी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सकासमुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटकाकभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या।
पार हाट, शायद मेला; रंग-रंग गुब्बारे।उठते लघु-लघु हाथ, सीटियाँ; शिशु सजे-धजेमचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छह बजे।पथ, इमली में भरा व्योम, आ बैठे तारे
'सेवा ...
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