वे भूखे प्यासे, पपड़ाये होंठ सूखे गले, पिचके पेट, पैरों में छाले लिए पसीने से तरबतर, सिरपर बोझा उठाये सैकड़ो मील पैदल चलते पत्थर के नहीं बने पथरा गये चलते-चलते।
टूटी आस, अटकती सांस लिए घर को जा रहे हैं, जहां भूख पहले से प्रतीक्षा में है उनकी। वे मजदूर हैं, मेहनतकश हैं चेारी कर नहीं सकते बस मर स...
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