स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहिं ।जैसे पंछी सरस तरु, निरस भये उड़ि जाहिं ।। १ ।।
मान होत है गुनन तें, गुन बिन मान न होइ ।सुक सारी राखै सबै, काग न राखै कोइ ।। २ ।।
मूरख गुन समझै नहीं, तौ न गुनी में चूक ।कहा भयो दिन को बिभो, देखै जो न उलूक ।। ३ ।।
विद्या-धन उद्यम बिना, कही जु पावै कौन ।...
पूरा पढ़ें...