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वृन्द के नीति-दोहे

स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहिं ।जैसे पंछी सरस तरु, निरस भये उड़ि जाहिं ।। १ ।।
मान होत है गुनन तें, गुन बिन मान न होइ ।सुक सारी राखै सबै, काग न राखै कोइ ।। २ ।।
मूरख गुन समझै नहीं, तौ न गुनी में चूक ।कहा भयो दिन को बिभो, देखै जो न उलूक ।। ३ ।।
विद्या-धन उद्यम बिना, कही जु पावै कौन ।...

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कवि वृन्द के दोहे 

जाही ते कछु पाइये, करिये ताकी आस। रीते सरवर पर गये, कैसे बुझत पियास॥ 
दीबो अवसर को भलो, जासों सुधेरै काम। खेती सूखे बरसिबे, घन को कौनै काम॥ 
अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिये दौर। तेतो पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौर॥ 
विद्या-धन उद्यम बिना, कहौ जु पावै कौन। बिना ...

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वृन्द का जीवन परिचय