पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 4

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बुढ़िया

बुढ़िया चला रही थी चक्कीपूरे साठ वर्ष की पक्की।
दोने में थी रखी मिठाईउस पर उड़ मक्खी आई
बुढ़िया बाँस उठाकर दौड़ीबिल्ली खाने लगी पकौड़ी।झपटी बुढ़िया घर के अंदरकुत्ता भागा रोटी लेकर।
बुढ़िया तब फिर निकली बाहरबकरा घुसा तुरंत ही भीतर।बुढ़िया चली गिर गया मटकातब तक वह बकरा भी सटका।
बुढ़िया बैठ गई त...

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झलमला

मैं बरामदे में टहल रहा था। इतने में मैंने देखा कि विमला दासी अपने आंचल के नीचे एक प्रदीप लेकर बड़ी भाभी के कमरे की ओर जा रही है। मैंने पूछा, 'क्यों री! यह क्या है ?' वह बोली, 'झलमला।' मैंने फिर पूछा, 'इससे क्या होगा ?' उसने उत्तर दिया, 'नहीं जानते हो बाबू, आज तुम्हारी बड़ी भाभी पंडितजी की बहू की ...

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उलहना

कहो तो यह कैसी है रीति? तुम विश्वम्भर हो, ऐसी, तो होतो नहीं प्रतीति॥
जन्म लिया बन्दीगृह में क्या और नहीं था धाम? काला तुमको कितना प्रिय है, रखा कृष्ण ही नाम॥
पुत्र कहाये तो ग्वाले के, बने रहे गोपाल। मणि मुक्ता सब छोड़, गले में पहने क्या बनमाल॥
चोर बने मक्खन के, दुनिया हँसती आज तमाम। जहाँ देखता...

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कृतघ्नता

चन्द्र हरता हैनिशा की कालिमा,हृदय की देताउसे है लालिमा॥
किन्तु होकर लोक-निन्दा से अशंक,निशा देती हैउसे अपना कलंक॥
-पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी

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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय