चलता नहीं काठ का घोड़ा!
माँ चिंतित होंगी, ले चल घर, देख बचा दिन थोड़ासोने की थी बनी अटारी,हाय! लगाई थी फुलवारी,फूल रही थी क्यारी-क्यारी,फल से लदे वृक्ष थे पर मैंने न एक भी तोड़ा ।
छोड़ दिया सुख-दुख क्षण भर में,गिरे खिलौने बीच डगर में,पड़े रहे कुछ सूने घर में,सखा और संगिनियों से तो अब बरबस मुंह ...
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