निदा फ़ाज़ली साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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निदा फ़ाज़ली के दोहे

बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान ।अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान ।।
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार ।दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ।।
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव ।वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव ।।
नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान ।कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दो...

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माँ | ग़ज़ल

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँयाद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरेआधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गूंजे, राधा - मोहन अली-अलीमुर्गी की आवाज़ से खुलती, घर की कुण्डी जैसी माँ
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन, थोड...

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अपना ग़म लेके | ग़ज़ल

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जायेघर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहींउन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये
बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैंकिसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब मेंऔर कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये
घ...

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घर से निकले ....

घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे
इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे
शाम होते ही सिमट जाएँगे सारे रस्ते बहते दरिया-से जहाँ होंगे, ठहर जाओगे
हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे
पहले ...

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कभी कभी यूं भी हमने

कभी कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया हैजिन बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है
मीरो ग़ालिब के शेरों ने किसका साथ निभाया हैसस्ते गीतों को लिख लिखकर हमने घर बनवाया है
हमसे पूछो इज़्जत वालों की इज़्जत का हाल कभीहमने भी इक शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है
उसको भूले मुद्दत गुज़री लेकिन आज न जा...

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दुख में नीर बहा देते थे

दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थेसीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे
नफ़रत चढ़ती आँधी जैसी प्यार उबलते चश्मों साबैरी हूँ या संगी साथी सारे अपने लगते थे
बहते पानी दुख-सुख बाँटें पेड़ बड़े बूढ़ों जैसेबच्चों की आहट सुनते ही खेत लहकने लगते थे
नदिया पर्बत चाँद निगाहें माला एक कई ...

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सफ़र में धूप तो होगी | ग़ज़ल

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो ...

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निदा फ़ाज़ली का जीवन परिचय