हम दीवानों की क्या हस्ती,आज यहाँ कल वहाँ चले,मस्ती का आलम साथ चला,हम धूल उड़ाते जहाँ चले ।
आए बनकर उल्लास अभी,आँसू बनकर बह चले अभी,सब कहते ही रह गए, अरे,अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले ?
किस ओर चले? मत ये पूछो,बस चलना है, इसलिए चले,जग से उसका कुछ लिए चले,जग को अपना कुछ दिए चले,
दो बात कहीं, दो बात स...
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