दुबले पतंगी कागज़ काउड़ता हुआ टुकड़ा नहींप्रसूती मन कीबलवती संतान हैं।
तन, बदन, रूप औरआकार कुछ होता नहींपिंजड़े से निकल भागेंफिर पकड़ कर बताए कोई दिल पर राज करतीं हैं।
रंगीन तितली बैठती हैफूल फूल पर मेरे साथहम बात करते हैंमधु कलश लेकिनभर नहीं पाता कभीप्यास बनी रहती है।
इच्छा की, तभी तोपैर आगे ...
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