आलोक धन्वा साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 3

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फ़र्क़

देखनाएक दिन मैं भी उसी तरह शाम मेंकुछ देर के लिए घूमने निकलूंगाऔर वापस नहीं आ पाऊँगा !
समझा जायेगा किमैंने ख़ुद को ख़त्म किया !
नहीं, यह असंभव होगाबिल्कुल झूठ होगा !तुम भी मत यक़ीन कर लेनातुम तो मुझे थोड़ा जानते हो !तुमजो अनगिनत बारमेरी कमीज़ के ऊपर ऐन दिल के पासलाल झंडे का बैज लगा चुके होतुम भ...

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भागी हुई लड़कियां

(एक)
घर की ज़ंजीरें कितना ज़्यादा दिखाई पड़ती हैंजब घर से कोई लड़की भागती है
क्या उस रात की याद आ रही हैजो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थीजब भी कोई लड़की घर से भागती थी? बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट सिर्फ़ आँखों की बेचैनी दिखाने-भर उनकी रोशनी?
और वे तमाम गाने रजतपर्दों पर दीवानगी के ...

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उतने सूर्यास्त के उतने आसमान

उतने सूर्यास्त के उतने आसमान उनके उतने रंगलम्बी सड़कों पर शामधीरे बहुत धीरे छा रही शामहोटलों के आसपासखिली हुई रोशनीलोगों की भीड़दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे उनके कंधे, जानी-पहचानी आवाज़ेंकभी लिखेंगे कवि इसी देश में इन्हें भी घटनाओं की तरह।
-आलोक धन्वा
 

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आलोक धन्वा का जीवन परिचय