लीक पर वे चलें जिनकेचरण दुर्बल और हारे हैं,हमें तो जो हमारी यात्रा से बनेऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।
साक्षी हों राह रोके खड़ेपीले बाँस के झुरमुट,कि उनमें गा रही है जो हवाउसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।
शेष जो भी हैं-वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ;गर्व से आकाश थामे खड़ेताड़ के ये पेड़,हिलती क्षितिज...
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