अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 4

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रंगीन पतंगें

अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगेकाली नीली पीली भूरी लाल पतंगे
कुछ सजी हुई सी मेलों मेंकुछ टँगी हुई बाज़ारों मेंकुछ फँसी हुई सी तारों मेंकुछ उलझी नीम की डालों मेंकुछ कटी हुई कुछ लुटी हुईपर थीं सब अपनी गाँवों मेंअच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगेकाली नीली पीली भूरी लाल पतंगे
था शौक मुझे जो उड़ने काआक...

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छोटी सी बिगड़ी बात को

छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग यह और बात है के यूँ उलझा रहे हैं लोग
चर्चा तुम्हारा बज़्म में ग़ैरों के इर्द गिर्द कुछ इस तरह से दिल मेरा बहला रहे हैं लोग
अरमाँ नये साहिल नये सब सिलसिले नये उजड़े हुए दायर में दिखला रहे हैं लोग
कहते हैं कभी इश्क़ था अब रख रखाओ है फिर आज क्यों यूँ देखकर...

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विडम्बना | अब्बास रज़ा अल्वी की कविता

आज मैं पीटी नहीं मार डाली गयी हूँ मैं पीटी गयी तुम देखते रहेख़बरों की सुर्ख़ियों में पढ़ते रहेकम्प्युटर पर ईमेल में भेजते रहेटीवी के स्क्रीन पर सुनते रहेमैं बार बार पीटी गयी तुम बार-बार देखते रहेऔर सुन-सुन के सहते रहेतरस तो आया तुम्हें मैं तुम्हारे देश की हूँदिल में आया तुम्हारे कि मैं तुम्हारी ...

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मेरे देश का एक बूढ़ा कवि

फटे हुए लिबास में क़तार में खड़ा हुआ उम्र के झुकाओ में आस से जुड़ा हुआ किताब हाथ में लिये भीड़ से भिड़ा हुआ कोई सुने या न सुने आन पे अड़ा हुआ
आँखें कुछ धँसी हुई थीं, हाथ थरथरा रहे थे होंट कुछ फटे हुए थे, पैर डगमगा रहे थे गिड़गिड़ाते लड़खड़ाते अपने हाथ भींचकरआँख में आँसू लिये कह रहा था चीख़कर
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अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया का जीवन परिचय