जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी कोकितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को
इसको भावशून्यता कहिये चाहे कहिये निर्बलतानाम कोई भी दे सकते हैं आप मेरी मजदूरी को
सम्बंधों के वो सारे पुल क्या जाने कब टूट गएजो अकसर कम कर देते थे मन से मन की दूरी को
दोष कोई सिर पर मढ़ देंगे झूठे किस्से गढ...
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