गुलज़ार साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 2

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महामारी लगी थी

घरों को भाग लिए थे सभी मज़दूर, कारीगरमशीनें बंद होने लग गई थीं शहर की सारीउन्हीं से हाथ पाओं चलते रहते थेवगर्ना ज़िन्दगी तो गाँव ही में बो के आए थे।
वो एकड़ और दो एकड़ ज़मीं, और पांच एकड़कटाई और बुआई सब वहीं तो थीज्वारी, धान, मक्की, बाजरे सब।
वो बँटवारे, चचेरे और ममेरे भाइयों सेफ़साद नाले पे, प...

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मज़दूर

कुछ ऐसे कारवां देखे हैं सैंतालिस में भी मैनेये गांव भाग रहे हैं अपने वतन मेंहम अपने गांव से भागे थे, जब निकले थे वतन कोहमें शरणार्थी कह के वतन ने रख लिया थाशरण दी थीइन्हें इनकी रियासत की हदों पे रोक देते हैंशरण देने में ख़तरा हैहमारे आगे-पीछे, तब भी एक क़ातिल अजल थीवो मजहब पूछती थीहमारे आगे-पीछे,...

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गुलज़ार का जीवन परिचय