घरों को भाग लिए थे सभी मज़दूर, कारीगरमशीनें बंद होने लग गई थीं शहर की सारीउन्हीं से हाथ पाओं चलते रहते थेवगर्ना ज़िन्दगी तो गाँव ही में बो के आए थे।
वो एकड़ और दो एकड़ ज़मीं, और पांच एकड़कटाई और बुआई सब वहीं तो थीज्वारी, धान, मक्की, बाजरे सब।
वो बँटवारे, चचेरे और ममेरे भाइयों सेफ़साद नाले पे, प...
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