धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 8

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एक वाक्य

चेक बुक हो पीली या लाल,दाम सिक्के हों या शोहरत --कह दो उनसेजो ख़रीदने आये हों तुम्हेंहर भूखा आदमी बिकाऊ नहीं होता है!
-धर्मवीर भारती[सात गीत वर्ष]
 

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उपलब्धि

मैं क्या जिया ?
मुझको जीवन ने जिया -बूँद-बूँद कर पिया, मुझकोपीकर पथ पर ख़ाली प्याले-सा छोड़ दिया
मैं क्या जला?मुझको अग्नि ने छला -मैं कब पूरा गला, मुझकोथोड़ी-सी आँच दिखा दुर्बल मोमबत्ती-सा मोड़ दिया
देखो मुझेहाय मैं हूँ वह सूर्यजिसे भरी दोपहर मेंअँधियारे ने तोड़ दिया !
-धर्मवीर भारती[सात गीत ...

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उत्तर नहीं हूँ

उत्तर नहीं हूँमैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
नये-नये शब्दों में तुमनेजो पूछा है बार-बारपर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैंप्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
तुमने गढ़ा है मुझेकिन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं कियायाफूल की तरहमुझको बहा नहीं दियाप्रश्न की तरह मुझको रह-रह दोहराया हैनयी-नयी स्थितियों में मुझको...

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अविष्ट

दुख आया घुट-घुट कर मन-मन मैं खीज गया
सुख आया लुट-लुट कर मैं छीज गया
क्या केवल पूंजी के बल मैंने जीवन को ललकारा था
वह मैं नहीं था, शायद वह कोई और था उसने तो प्यार किया, रीत गया, टूट गया पीछे मैं छूट गया
-धर्मवीर भारती[सात गीत-वर्ष, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1964]
 
 
 

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क्योंकि सपना है अभी भी

...क्योंकि सपना है अभी भीइसलिए तलवार टूटी अश्व घायलकोहरे डूबी दिशाएंकौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिलकिन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...क्योंकि सपना है अभी भी!तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावाजब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ाकुछ नहीं था पास बस इसके अलावाविदा बेला, यही सपना भ...

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गुल की बन्नो

‘‘ऐ मर कलमुँहे !' अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाजा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा, ‘‘तोरे पेट में फोनोगिराफ उलियान बा का, जौन भिनसार भवा कि तान तोड़ै लाग ? राम जानै, रात के कैसन एकरा दीदा लागत है !'' मारे डर के कि कहीं घेघा बुआ सारा कूड़ा ...

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उत्तर नहीं हूँ

उत्तर नहीं हूँमैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
नये-नये शब्दों में तुमनेजो पूछा है बार-बारपर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैंप्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
तुमने गढ़ा है मुझेकिन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं कियायाफूल की तरहमुझको बहा नहीं दियाप्रश्न की तरह मुझको रह-रह दोहराया हैनयी-नयी स्थितियों में मुझको...

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पूजा गीत

जिस दिन अपनी हर आस्था तिनके-सी टूटे जिस दिन अपने अन्तरतम के विश्वास सभी निकले झूठे !उस दिनहोंगे वे कौन चरण जिनमें इस लक्ष्यभ्रष्ट मन को मिल पायेगीअन्त में शरण ?
हम पर जब छाये भ्रम दोहरा जर्जर तन पर कल्मष, हारे मन पर कोहरा हर एक सूत्र जिसको हम समझे प्रभु का स्वरकसने पर साबित हो केवल शब्दाडम्बर ! ...

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धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti का जीवन परिचय