कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जाये,पाप-पुण्य सद्-सद् भावों की धूल उड़ उठे दायें-बायें,नभ का वक्षस्थल...
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