बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin साहित्य Hindi Literature Collections

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जूठे पत्ते

क्या देखा है तुमने नर को, नर के आगे हाथ पसारे?क्या देखे हैं तुमने उसकी, आँखों में खारे फ़व्वारे?देखे हैं? फिर भी कहते हो कि तुम नहीं हो विप्लवकारी?तब तो तुम पत्थर हो, या महाभयंकर अत्याचारी।
अरे चाटते जूठे पत्ते, जिस दिन मैंने देखा नर कोउस दिन सोचा क्यों न लगा दूँ, आज आग इस दुनिया भर को?यह भी सोच...

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विप्लव-गान | बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जाये,पाप-पुण्य सद्-सद् भावों की धूल उड़ उठे दायें-बायें,नभ का वक्षस्थल...

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बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin का जीवन परिचय