आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?
शिशिर ऋतु की धूप-सा सखि, खिल न पाया मिट गया सुख,और फिर काली घटा-सा, छा गया मन-प्राण पर दुख,फिर न आशा भूलकर भी, उस अमा में मुसकराई!आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?
हाँ कभी जीवन-गगन में, थे खिले दो-चार तारे,टिमटिमाकर, बादलों में, मिट चुके पर आज सारे,...
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