लुढ़कता पत्थर शिखर से, क्यों हमें लुढ़का न देगा ।
क्रेन पर ऊँचा चढ़ा कर, चैन उसकी क्यों तोड़ दीदर्शन बनाया लोभ का , मझधार नैया छोड़ दीऋण-यन्त्र से मन्दी बढ़ी, डॉलर नदी में बह लियाअर्थ के मैले किनारे, नाच से सम्मोहित किया
बहकता उन्माद सिर पर, क्यों हमें बहका न देगालुढ़कता पत्थर शिखर से, क्यों ...
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