’चाची...।’ पड़ोस वाली नन्हीं पिंकी आवाज़ दे रही थी। 

राशि ने खिड़की से झाँका। पिंकी आँगन में खड़ी थी। उसके आसपास ज़मीन पर चावल बिखरे थे। राशि को खिड़की पर देखकर पिंकी दौड़ती हुई आई और बोली, ’चाची, चावल दो ना, मुझे चिया को किलाना है, माँ चावल नहीं दे रही।’ राशि ने मुस्कुराते हुए कहा, ’वो देखो, ज़मीन पर कितने सारे चावल बिखरे हैं, पहले चिया को इतने चावल तो खिला दो।’ पिंकी बोली, ’खा लेगी चिया, सब खा लेगी। अभी देखना, जैसे ही आँगन खाली होगा, चिया चावल चुगने यहाँ आ जाएगी। उसे और चावल दो ना चाची।’ 

राशि खिड़की से हटी और रसोई से चावल लाकर पिंकी को दे दिए। पिंकी फिर मगन हो गई और राशि का ध्यान भी उधर ही लग गया। दो-चार चिड़ियाँ पिंकी से थोड़ा दूर रहकर चावल चुगतीं और पिंकी के पास आते ही फुर्र से उड़ जातीं। पिंकी उन्हें बुलाने लगती। ’आ चिया, आ..’। 

राशि सोचने लगी; ’ऐसे ही तो वो भी बुलाती थी’। रोज़ सुबह होते ही वो आंगन में पहुँच जाती और जिस दिन वो नहीं पहुँचती, दादाजी की आवाज़ लग जाती ’राशि, चिड़ियों को दाना नहीं खिलाएगी?’ अक्सर दादी कहती, ’क्या रोज़ सुबह राशि को खेल में लगा देते हो, अरे अब उसे पढ़ने बैठाया करो। स्कूल में नाम लिखाना है। ये खेल उसकी ज़िन्दगी नहीं बनाएगा।’ दादाजी कहते, ’स्कूल जाने लगेगी तो पढ़ लेगी, अभी तो खेलने दो हमारे आँगन की चिड़िया को।’ 

राशि, दादाजी की याद कर, खिड़की से हट आई और अनमनी सी बैठ गई। कुछ करने को ही नहीं है। लंच वो तैयार कर चुकी है। कपड़े धुल कर सूख रहे हैं। बच्चों के स्कूल से आने में देर है।


2


पिंकी को चिया के साथ देखकर राशि की बचपन की यादें ताज़ा हो गई हैं। 

दादाजी और दादी का दुलार याद आ रहा है। पिताजी का प्यार याद आ रहा है, पर सबसे ज़्यादा उसे माँ याद आ रही है। 

बार-बार उसकी आँखें माँ को याद कर भर जाती हैं। ’कल माँ से बात की थी, तब पता लगा था कि वो तीन दिन से बुखार में पड़ी थीं।’ राशि बेचैन हो गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि माँ डॉक्टर से दवा ले रहीं होंगी, पर माँ उसे तसल्ली देती रही कि अब तो उसका बुखार उतर भी गया है। 

राशि क्या करे। कैसे समझाए खुद को। वो इतनी दूर है कि चाहकर भी माँ को देखने नहीं पहुँच सकती। 

अभी कुछ दिन पहले ही तो वो माँ से मिलकर आई है। पर ऐसे नहीं चलेगा। अगर वो नहीं जा सकती, तो माँ की बात पर ही यकीन करना होगा। उसे किसी तरह अपना मन इन बातों से हटाना होगा। 

उसने खुद को संयत किया ’चलो, वो अपनी अलमारी ठीक कर लेगी। इस बार मायके से लौटकर उसने सूटकेस खाली किया और अलमारी में भर दिया। तब से डेढ़ हफ्ते हो गये, आज सारा सामान तरतीब से रख देगी।’ 

अलमारी खोलते ही उसे सामने नज़र आई माँ की दी हुई साड़ी। राशि ने बड़े प्यार से उस पर हाथ फेरा। ’माँ ने अपने हाथ से काढ़ी थी। इस बार चलते वक़्त माँ जल्दी से उसके हाथों में ये साड़ी थमा गई थीं।’ उसने साड़ी निकालकर कंधे पर डाल कर देखा। उसे लगा, माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा है। 

राशि ने कंधे से साड़ी उतारकर उसे अच्छी तरह संभालकर हैंगर पर टांग दिया। दो चार कपडे ठीक किये, तभी राशि का हाथ उस अलबम पर पड़ा, जो वो इस बार माँ से मांग लाई थी। उसने अलबम खोला, तो उसका बचपन सामने आ गया।

कितनी सारी तस्वीरें हैं बचपन की। कहीं वो दादाजी और दादीजी के साथ है, तो कहीं माँ-पिताजी के साथ। 

 

3

’ये उसकी सालगिरह की तस्वीरे हैं।’ सुन्दर फ्रॉक में नन्ही राशि मुस्कुरा रही थी। ’ये फ्रॉक माँ ने बनाई थी।’ राशि ने ठान लिया था कि इस बार सालगिरह में वो झालर वाली घेरदार फ्रॉक ही पहनेगी। बाज़ार के कई चक्कर लगे, पर राशि की पसंद की फ्रॉक कहीं नहीं मिली। तब माँ ने रात भर जागकर ये फ्रॉक बनाई थी, जिसे देखकर राशि माँ से लिपट गई थी ’यही फ्रॉक चाहिए थी मुझे।’ 

’माँ कैसे समझ जाती थी उसके मन की बात, बचपन में’। ’पर आज, वही माँ समझते हुए भी राशि के मन से अनजान बनकर जी रही है’। राशि ने फिर गहरी सांस ली। उसकी नज़रें अभी भी सालगिरह वाले फोटो पर टिकी थीं। वो देख रही है माँ का उजला चेहरा...’कितनी चमक है माँ के चेहरे पर।’ जब तक पिताजी थे, माँ का चेहरा ऐसे ही चमकता था। बाद की तस्वीरों में दादाजी और दादीजी नहीं हैं। यहाँ माँ-पिताजी के साथ वो, भाई का हाथ थामे खड़ी है।

उसका छोटा भाई; जो माँ की गोद के लिए मचल रहा था, पर फोटोग्राफर के कहने पर उसे राशि के साथ खड़ा होना पड़ा। तभी तो तस्वीर में उसके नन्हें से चेहरे पर गुस्सा झलक रहा है। ’आज यही भाई कितना बड़ा दिखने लगा है। चेहरा भी बदल गया है।’ 

राशि गहरी सांस लेकर अलबम पलटने लगी। ’ये तस्वीर तो पिताजी के बाद की है।’ वो और माँ साथ बैठे हैं। भाई पीछे खड़ा है। भाई का एक हाथ उसके कंधे पर है और एक माँ के कंधे पर। माँ का चेहरा उतरा हुआ है, पर उसकी आँखों में कितना विश्वास झलक रहा है। 

भाई को देख राशि और माँ दोनों के चेहरे खिल जाते थे। राशि को तो अपना भाई दुनिया से निराला लगता। माँ के साथ वो भी यही कोशिश करती कि भाई को सबसे अच्छी चीज़ मिले। सबसे अच्छा कपड़ा पहने और उसे घर का सबसे अच्छा बिस्तर मिले। वो भाई के साथ साये की तरह लगी रहती। उसकी ग़लतियाँ अपने सर ले लेती। माँ की डांट से उसे बचा लेती। उसे लगता, भाई जब बड़ा हो जाएगा, तो खुद ही समझ जाएगा। फिर घर, उसी तरह मुस्कुराएगा जैसे पिताजी के समय मुस्कुराता था। 

 

4

राशि की आँखे गीली हो आईं। ’जो सोचो, वो कहाँ होता है।’ 

ये तस्वीर रक्षाबंधन की है। ’कितनी ख़ुशी झलक रही है राशि के चेहरे पर, और भाई कैसे मुस्कुरा रहा है।’ अब तो रक्षाबंधन आता है, तो वो कल्पना में ही भाई को राखी बंधवाते देख लेती है और अपना व्रत खोल लेती है। उसका मन ही नहीं होता रक्षाबंधन पर भाई के पास जाने का।

उसने सोचा, और अलबम बंद कर माँ को फोन मिलाने लगी। घंटी बजती रही। ’शायद माँ सो गई होंगी।’ राशि ने फोन रख दिया। ’आँख लग गई होगी माँ की। वो कितनी कमज़ोर हो गई हैं।’ 

राशि जब तक माँ के पास रही, उसे लगता रहा किसी तरह माँ को आराम मिले। जब वो रात में माँ के पैरो में तेल लगाने लगती, तो माँ मुस्कुराकर कहती ’जाने दे राशि, इन बूढ़ी हड्डियों में तू चाहे तेल लगा या घी, इनका दर्द नहीं जाएगा।’ 

माँ अब कितना चुप भी रहने लगी हैं, और भाई कितना बोलने लगा है। कितनी शिकायते हैं भाई को। ’अपने बचपन की, अपने घर की और माँ के व्यवहार की।’ 

भाई की उन शिकायतों में एक बार भी माँ के उस संबल की बात नहीं होती, जो कदम-कदम पर माँ उन्हें देती आई है। 

राशि को याद है। यही भाई, कभी किसी चीज़ की इच्छा करता, तो माँ ’कैसे ना कैसे’ उसे पूरा करती थीं। उसे पढ़ाने के लिए माँ ने अपनी जमा-पूँजी लगा दी। आज वही भाई माँ के सामने जब-तब पैसे का रोना रोता रहता है। यही भाई था, जिसे मोटर साइकिल दिलाने के लिए माँ ने अपनी चूड़ियाँ तक बेच दीं थीं। वही भाई आज माँ की दवा लाना भूल जाता है। उसे शिकायत है कि माँ ने उसे ’वो सब’ नहीं दिया, जो दूसरे बच्चों को मिलता है। ये शिकायत करते समय वो भूल जाता है कि पापा के बाद माँ ने अपनी खुशियों का तिल-तिल होम करते हुए, किस तरह उसके लिए खुशियां जुटाई हैं। कभी-कभी तो अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर भी माँ ने भाई की इच्छा पूरी की है, पर भाई को आज माँ की हर बात से शिकायत है। 

 

5

भाई की शिकायतों पर भाभी की मुस्कान उससे देखी नहीं जाती, पर राशि अब चाहकर भी भाई को समझा नहीं पाती। उसे अपना भाई बिलकुल अजनबी लगता है और माँ बेहद निरीह लगती है। 

राशि का मन, माँ का चेहरा देखकर भर आता है। इस बार उसने माँ से कहा, ’तुम साथ चलो माँ।’ पर माँ ने मना कर दिया ’ना राशि, बेटी के घर माँ अच्छी नहीं लगती।’ राशि के तमाम तर्क धरे रह गये, पर माँ साथ नहीं आईं। 

कैसे आएंगी। वो तो आँगन की चिड़िया थी, जो अपना आँगन छोड़ उड़ चुकी है। अब तो उसे सिर्फ़ मेहमान बनकर आना है। चार दिन हँस-खेलकर फिर वापिस लौट जाना है। लाख जुड़ा हो उसका मन, उस आँगन से; पर, वो बेटी है, पराये घर की है और भाई लाख शिकायतें करे, पर वो बेटा है, अपने घर का है। यही सच है। 

- राजुल अशोक
  मुंबई - 400102, महाराष्ट्र, भारत
  ई-मेल : rajulashok@gmail.com