‘छुट्टी की बड़ी समस्या है दीदी, पापा अस्पताल में नर्सो के सहारे हैं!’ भाई से फोन वार्ता समाप्त होते ही सुमी तुरन्त अटैची तैयार कर बनारस से दिल्ली चल दी।
अस्पताल पहुँचते ही देखा कि पापा बेहोशी के हालत में बड़बड़ा रहे थे। उसने झट से उनका हाथ अपने हाथों में लेकर, एहसास दिला दिया कि कोई है, उनका अपना।
हाथ का स्पर्श पाकर जैसे उनके मृतप्राय शरीर में जान-सी आ गयी हो। वार्तालाप घर-परिवार से शुरू होकर न जाने कब जीवन बिताने के मुद्दे पर आकर अटक गयी।
एक अनुभवी स्वर प्रश्न बन उभरा, तो दूसरा अनुभवी स्वर उत्तर बन बोल उठा—"पापा, पहला पड़ाव आपके अनुभवी हाथ को पकड़ के बीत गया। दूसरा पति के ताकतवर हाथों को पकड़ बीता और तीसरा बेटों के मजबूत हाथों में बीत गया।"
"चौथा ...! वह कैसे बीतेगा, कुछ सोचा? वही तो बीतना कठिन होता है बिटिया।"
"चौथा आपकी तरह!"
"मेरी तरह! ऐसे बीमार, नि:सहाय!"
"नहीं पापा, आपकी तरह अपनी बिटिया के शक्तिशाली हाथों को पकड़, मैं भी चौथा पड़ाव पार कर लूँगी।"
"मेरा शक्तिशाली हाथ तो मेरे पास है, पर तेरा किधर है?" पिता ने मुस्कुराकर पूछा।
"नानाजी..." तभी अंशु का सुरीला स्वर उनके कानों में पड़ा जो पूरे कमरे को संगीतमय कर गया।
-सविता मिश्रा ‘अक्षजा'
आगरा, भारत
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