तुम मेरी बेघरी पे बड़ा काम कर गए
कागज का शामियाना हथेली पर धर गए
बोगी में रह गया हूं अकेला मैं दोस्तो!
एक एक करके सारे मुसाफिर उतर गए
गरमी में खोलते थे जो पानी की गुमटियां
तिश्नालबो! वो लोग न जाने किधर गए
यारो, सियासी शहर की इतनी-सी बात है
नकली मुकुट लगा के सभी बन-संवर गए
अक्वेरियम में डाल दीं जब मछलियां तमाम
तो यूं लगा कि सारे समंदर ठहर गए
-ज्ञानप्रकाश विवेक