फिर तेरी याद जो कहीं आई
नींद आने को थी नहीं आई
मैंने देखा विपत्ति का अनुराग
मैं जहाँ था चली वहीं आई
भूमि ने क्या कभी बुलाया था
मृत्यु क्यों स्वर्ग से यहीं आई
व्रत लिया कष्ट सहे वे भी थे,
सिद्धि उनके यहाँ नहीं आई
साधना के बिना ‘त्रिलोचन' कब
सिद्धि ही रीझ कर कहीं आई
-त्रिलोचन