मान अपना बचावो, सम्हलकर पाँव उठावो ।
गाबो भाव भरे गीतों को, बाजे उमग बजावो ॥
तानें ले ले रस बरसावो, पर ताने ना सहावो ।
भूल अपने को न जावो ।।१।।
बात हँसी की मरजादा से कड़कर हँसो हँसावो ।
पर अपने को बात बुरी कह आँखों से न गिरावो ।
हँसी अपनी न करायो ॥२॥
खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो ।
पर अति सुरंग लाल चादर को मत बदरंग बनावो ।
न अपना रंग गॅवाबो ॥३॥
जन्म-भूमि की रज को लेकर सिर पर ललक चढ़ावो ।
पर अपने ऊँचे भावों को मिट्टी में न मिलावो।
न अपनी धूल उड़ावो ॥४॥
प्यार-उमग-रंग में भीगी सुन्दर फाग मचावो ।
मिलजुल जी की गाँठें खोलो हित की गाँठ बँधावो।
प्रीति की बेलि उगावो ||५||
--हरिऔध