बिस्तरा है न चारपाई है
जिंदगी ख़ूब हम ने पाई है
कल अंधेरे में जिस ने सर काटा,
नाम मत लो हमारा भाई है
गुल की ख़ातिर करे भी क्या कोई,
उस की तक़दीर में बुराई है
जो बुराई है अपने माथे है,
उन के हाथों महज़ भलाई है
अब तो जैसी भी आए सहना है,
दिल से आवाज़ ऐसी आई हैं
ठोकरें दर-ब-दर की थीं, हम थे
कम नहीं हम ने मुंह की खाई है
तुम ने अब तक नहीं विचार किया,
आज फिर उन की बात आई है
दिल की बातें निकाल लीं बाहर,
रागिनी कौन तुम ने गाई हैं
सब्र से काम लो ज़रा ठहरो,
बात ज़ालिम ने क्या सुनाई है
गुल अगर बाग में रहे तो क्या,
कौन उस की वहाँ बड़ाई है
कब तलक तीर वे नहीं छूते,
अब इसी बात पर लड़ाई है
आदमी जी रहा है मरने को
सब के ऊपर यही सचाई है
कच्चे ही हो अभी ‘त्रिलोचन' तुम
धुन कहाँ वह सँभल के आई है
-त्रिलोचन
[गुलाब और बुलबुल]