नारदजी को व्यासजी का नमस्कार!

रचनाकार: गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

वंदनीय, भक्तप्रवर, देवर्षि एवं आदिपत्रकार नारदजी महाराज, मेरे हार्दिक प्रणाम स्वीकार करें !

लगभग 45 वर्षों से आप नियमित 'हिन्दुस्तान' के सुधी पाठकों के लिए नई, ताज़ा और मनभावन ख़बरें ढूंढ़-ढूंढ़कर लाते रहे और हमारे पाठकों को हर्षाते और सरसाते रहे।

मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि इस दीर्घकालीन अवधि में आपकी विश्वसनीयता और मेरी निष्ठा अक्षुण्ण बनी रही, लेकिन जैसे-जैसे आपके द्वारा पोषित और मेरे द्वारा लिखित 'नारदजी खबर लाए हैं' स्तंभ लंबी आयु का कीर्तिमान स्थापित करता गया, वैसे-वैसे मेरा भौतिक शरीर जवाब देता गया। अब स्थिति यह है कि "मेरे मन कछु और है,विधना के कछु और।"

आप तो देवलोक से पैयां-पैयां आते-जाते कहां थकने वाले थे, लेकिन मेरे ही हाथ-पैर थक गए। आपके निरंतर और नियमित आगमन के लिए मैं नतमस्तक हूं एवं विनम्र अनुरोध करता हूं कि ख़बरें देने के लिए आप पधारने का कष्ट न उठाएं, क्योंकि आपके आशीर्वाद से मैं स्वयं देवलोक आने की तैयारी कर रहा हूं। अब वहीं आपसे मिलना होगा। देवलोक में जैसे आप सबकी ख़बर लेते रहे हैं, मेरी भी ख़बर लेंगे।

सादर-सविनय,
(गोपालप्रसाद व्यास)

(व्यासजी का यह पत्र दैनिक हिन्दुस्तान में उनके देहांत वाले दिन शनिवार, 28 मई, 2005 को प्रकाशित हुआ था।)