कुंभ स्नान | लघुकथा

रचनाकार: डॉ. वंदना मुकेश | इंग्लैंड

कुम्भ स्नान लघुकथा
 
हज़ारों की भीड़ चली जा रही है गंगा-स्नान करने। वह भी उसी भीड़ का हिस्सा है। मन आशंकित है, फिर वह कौनसी शक्ति उसे वहाँ खींचे ले जा रही है। छोटे-से शहर में रहता है। ऐसे शहर में, जो हमेशा गलत कारणों से सुर्खियों में रहता है। बस परेशान हो गया वह और निकल पड़ा और उसी भीड़ का हिस्सा बन गया जो प्रयागराज महाकुंभ में स्नान करने जा रहे थे।
 
एकाएक भोजन की महक से उसकी इंद्रियाँ मचलने लगी। याद आया कि घर से निकले हुए 24 घंटे हो चुके थे उसे। परसों दोपहर बाद निकला था ....और अब दिन चढ़ने को है। वह मन ही मन सोच रहा था कि अव बह क्या करेगा? किससे मदद माँगे? कहाँ भोजन करेगा वह?  जब वह प्रयागराज रेलवे स्टेशन से बाहर निकला तब उसे होश आया कि उसकी जेब कट गई है। एक पुराना फोन और पाँच सौ रुपये थे उसके पास। लेकिन अब न पैसे न फोन। कौन मानेगा उसकी बात, किससे फरियाद करेगा?  वापस कैसे जाएगा? तभी लगभग उसका हाथ खींचते हुए किसी ने कहा, ‘भोजन पाइए महाराज’। वह समझ पाता, इसके पहले वह एक तंबू के अंदर था। पत्तल पर भोजन परोसा जा रहा था। वह सिमट गया, उसने चुपचाप भोजन कर लिया। उसकी जान में जान आई। हाथ धोकर वह बाहर आया। उसे ठंड महसूस हुई, फोन और पैसे गँवाने के बाद कपड़े गँवाने की इच्छा न थी। एक तो पहले ही उसका मन आशंकित औऱ अब सब कुछ गँवाकर गंगा स्नान की एक इच्छा क्षीण हो गई थी।  
 
लेकिन न जाने कैसे, बाहर आते ही बिना प्रयत्न के वह एक और भीड़ का हिस्सा बना गया। सब ज़ोर-ज़ोर से भक्ति-भाव से गाते जा रहे थे, ‘गंगा मैया की जय, जय जय गंगा मैया! ‘पतिततारिणी पापहारिणी, माता तेरी जय जय जय’ कुछ लोगों के माथे पर बड़े-बड़े चंदन और कुंकुम के तिलक लगे थे। उसके स्मृति-पटल पर एक फटी-सी किताब के कुछ पन्ने फड़फड़ाने लगे। वह भी जोर से चिल्लाया, ‘माता तेरी जय जय जय’ और ‘बिना बढ़े ही आगे को जाने किस बल के ढिकला! 
 
लोगों की देखादेखी यंत्रवत कपडे उतारे, गले की ताबीज़ भी छुपा कर शर्ट की जेब में रख दी। शर्ट को पेंट, स्वेटर  के बीच लपेटा कर रख दिया एक सुरक्षित कोने में। फिर उसने भी धीरे से पैर रख दिया पानी में। ‘जय गंगा मैया’ की पुकार के साथ लोग संकल्प ले-लेकर डुबकी ले रहे थे। उसने भी सबकी तरह दोनों हाथों में गंगा जल लिया और मुँह के भीतर ही बुदबुदाया, ‘या अल्लाह, मेरे तमाम भाई-बहनों को नेकी बख्श, मोहब्ब्त से भरदे अक्ल अता फरमा , ताकि कोई हम पर उँगली न उठाए’ रहम कर..., फिर उसकी आँखों से आँसू बह निकले जो गंगा के पानी में मिल गए ।
 
-डॉ वंदना मुकेश 
 35 ब्रुकहाउस रोड, वॉलसॉल, इंग्लैण्ड