खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो ।
पर अति सुरंग लाल चादर को मत बदरंग बनाओ ।
न अपना रग गँवाओ ।
जनम-भूमि की रज को लेकर सिर पर ललक चढ़ाओ ।
पर अपने ऊँचे भावो को मिट्टी में न मिलाओ ।
न अपनी धूल उड़ाओ ।
प्यार उमंग रंग में भीगो सुन्दर फाग मचाओ ।
मिलजुल जी की गांठे खोलो हित की गांठ बँधाओ ।
प्रीति को बेलि उगाओ ।
- पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'