मैं हूँ, कमरा है, दीवारें हैं, छत है, सीलन है, घुटन है, सन्नाटा है और मेरा अंतहीन अकेलापन है। हाँ, अकेलापन, जो अकसर मुझे कटहे कुत्ते-सा काटने को दौड़ता है । पर जो मेरे अस्तित्व को स्वीकार तो करता है । जो अब मेरा एकमात्र शत्रु-मित्र है । खुद में बंद मैं खुली खिड़की के पास जा खड़ा होता हूँ । अपनी अ...
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