सुशांत सुप्रिय साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 24

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कबीर | सुशांत सुप्रिय की कविता

एक दिन आप घर से बाहर निकलेंगे और सड़क किनारे फ़ुटपाथ पर चिथड़ों में लिपटा बैठा होगा कबीर 'भाईजान , आप इस युग में कैसे ' --- यदि आप उसे पहचान कर पूछेंगे उससे तो वह शायद मध्य-काल में पाई जाने वाली आज-कल खो गई उजली हँसी हँसेगा उसके हाथों में पड़ा होगा किसी फटे हुए अख़बार का टुकड़ा जिस में बची हुई ...

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वे

रेलगाड़ी के इस डिब्बे में वे चार हैं, जबकि मैं अकेला । वे हट्टे-कट्टे हैं , जबकि मैं कमज़ोर-सा । वे लम्बे-तगड़े हैं, जबकि मैं औसत क़द-काठी का । जल्दबाज़ी में शायद मैं ग़लत डिब्बे में चढ़ गया हूँ । मुझे इस समय यहाँ इन लोगों के बीच नहीं होना चाहिए -- मेरे भीतर कहीं कोई मुझे चेतावनी दे रहा है ।
देश...

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बदबू

रेल-यात्राओं का भी अपना ही मज़ा है । एक ही डिब्बे में पूरे भारत की सैर हो जाती है । 'आमार सोनार बांग्ला' वाले बाबू मोशाय से लेकर 'बल्ले-बल्ले' वाले सरदारजी तक, 'वणक्कम्' वाले तमिल भाई से लेकर 'केम छो ' वाले गुजराती सेठ तक -- सभी से रेलगाड़ी के उसी डिब्बे में मुलाक़ात हो जाती है । यहाँ तरह-तरह के ...

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इंडियन काफ़्का

मैं हूँ, कमरा है, दीवारें हैं, छत है, सीलन है, घुटन है, सन्नाटा है और मेरा अंतहीन अकेलापन है। हाँ, अकेलापन, जो अकसर मुझे कटहे कुत्ते-सा काटने को दौड़ता है । पर जो मेरे अस्तित्व को स्वीकार तो करता है । जो अब मेरा एकमात्र शत्रु-मित्र है । खुद में बंद मैं खुली खिड़की के पास जा खड़ा होता हूँ । अपनी अ...

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माँ | सुशांत सुप्रिय की कविता

इस धरती पर अपने शहर में मैं एक उपेक्षित उपन्यास के बीच में एक छोटे-से शब्द-सा आया था वह उपन्यास एक ऊँचा पहाड़ था मैं जिसकी तलहटी में बसा एक छोटा-सा गाँव था वह उपन्यास एक लंबी नदी था मैं जिसके बीच में स्थित एक सिमटा हुआ द्वीप था वह उपन्यास पूजा के समय बजता हुआ एक ओजस्वी शंख था मैं जिसकी ध्वनि-त...

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लौटना | सुशांत सुप्रिय की कविता

बरसों बाद लौटा हूँअपने बचपन के स्कूल मेंजहाँ बरसों पुराने किसी क्लास-रूम में सेझाँक रहा हैस्कूल-बैग उठाएएक जाना-पहचाना बच्चा
ब्लैक-बोर्ड पर लिखे धुँधले अक्षरधीरे-धीरे स्पष्ट हो रहे हैंमैदान में क्रिकेट खेलतेबच्चों के फ़्रीज़ हो चुके चेहरेफिर से जीवंत होने लगे हैंसुनहरे फ़्रेम वाले चश्मे के पीछे ...

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एक ठहरी हुई उम्र | सुशांत सुप्रिय की कविता

मैं था तब इक्कीस काऔर वह थी अठारह की
हाथी-दाँत-सा उजला था उसका मनऔर मैं चाहता थाबाँध लेना उसकी छाया को भी
लपट भरा एक फूल थी वहऔर मैं चाहता थाउस की ख़ुशबू की आँच में जल जाना
मैं था तब इक्कीस काऔर वह थी अठारह कीजब एक दिन असमय हीसड़क-दुर्घटना में चल बसी वहरह गई वह अठारह की हीसदा के लिए
आज हूँ मै...

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हर बार | सुशांत सुप्रिय की कविता

हर बार अपनी तड़पती छाया को अकेला छोड़ कर लौट आता हूँ मैं जहाँ झूठ है , फ़रेब है , बेईमानी है , धोखा है -- हर बार अपने अस्तित्व को खींच कर ले आता हूँ दर्द के इस पार जैसे-तैसे एक नई शुरुआत करने कुछ नए पल चुरा कर फिर से जीने की कोशिश में हर बार ढहता हूँ , बिखरता हूँ किंतु हर हत्या के बाद  वही...

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छटपटाहट भरे कुछ नोट्स | सुशांत सुप्रिय की कविता

                                   ( एक ) आज चारो ओर की बेचैनी से बेपरवाह जो लम्बी ताने सो रहे हैं वे सुखी हैं जो छटपटा कर जाग रहे हैं वे दुखी हैं                 &...

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कोई और | सुशांत सुप्रिय की कविता

एक सुबह उठता हूँ और हर कोण से ख़ुद को पाता हूँ अजनबी आँखों में पाता हूँ एक अजीब परायापन अपनी मुस्कान लगती है न जाने किसकी बाल हैं कि पहचाने नहीं जाते अपनी हथेलियों में किसी और की रेखाएँ पाता हूँ मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसा भी होता है हम जी रहे होते हैं किसी और का जीवन हमारे भीतर कोई और जी रहा...

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जब दुख मेरे पास बैठा होता है | सुशांत सुप्रिय की कविता

जब दुख मेरे पास बैठा होता है मैं सब कुछ भूल जाता हूँ पता नहीं सूरज और चाँद कब आते हैं और कब ओझल हो जाते हैं बादल आते भी हैं या नहीं क्या मालूम हवा गुनगुना रही होती है या शोक-गीत गा रही होती है न जाने दिशाएँ सूखे बीज-सी बज रही होती हैं या चुप होती हैं विसर्जित कर अपना सारा शोर-शराबा जब दुख मेरे प...

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गुजरात : 2002 | सुशांत सुप्रिय की कविता

जला दिए गए मकान में मैं नमाज़ पढ़ रहा हूँ उस मकान में जो अब नहीं है जिसे दंगाइयों ने जला दिया था वहाँ जहाँ कभी मेरे अपनों की चहल-पहल थी उस मकान में अब कोई नहीं है दरअसल वह मकान भी अब नहीं है जला दिए गए उसी नहीं मौजूद मकान में मैं नमाज़ पढ़ रहा हूँ यह सर्दियों का एक बिन चिड़ियों वाला दिन है जब...

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पांच कविताएं | सुशांत सुप्रिय की कविता

विडम्बना                                   कितनी रोशनी है फिर भी कितना अँधेरा है कितनी नदियाँ हैं फिर भी कितनी प्यास है कितनी अदालतें हैं फिर भी कितना अन्याय है कितने ईश्वर हैं फिर भी कितना अधर्म है कितनी आज...

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आज का आदमी | सुशांत सुप्रिय की कविता

मैं ढाई हाथ का आदमी हूँ मेरा ढाई मील का ' ईगो ' है मेरा ढाई इंच का दिल है दिल पर ढाई मन का बोझ है
- सुशांत सुप्रिय मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग , बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) , नई दिल्ली - 110055 मो: 9868511282 / 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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अहसास | सुशांत सुप्रिय की कविता

जब से मेरी गली की कुतिया झबरी चल बसी थी गली का कुत्ता कालू सुस्त और उदास रहने लगा था कभी वह मुझे किसी दुखी दार्शनिक-सा लगता कभी किसी हताश भविष्यवेत्ता-सा कभी वह मुझे कोई उदास कहानीकार लगता कभी किसी पीड़ित संत-सा वह मुझे और न जाने क्या-क्या लगता कि एक दिन अचानक गली में आ गई एक और कुतिया गली के ब...

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एक चोरी अजीब-सी

यह कहानी सुनने के लिए आपको अपना काम छोड़ कर मेरे साथ रात के नौ बजे नुक्कड़ के ढाबे के भीतरी केबिन में चलना होगा जहाँ इलाक़े के चार-पाँच चोर और पॉकेटमार जमा हैं। जी हाँ, आपने सही पहचाना। मैं भी एक चोर हूँ। एक-दो दिन पहले हमारे इलाक़े के दादा ने कहीं तगड़ा हाथ मारा। उसी की ख़ुशी में आज रात दादा ने ...

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सुशांत सुप्रिय की कविताएं

सुशांत सुप्रिय की कविताएं का संकलन।

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सुशांत सुप्रिय की तीन कविताएं

पड़ोसी
मेरे घर केठीक बगल में हैं उनके घरपर नहीं जानता मैं उनके बारे मेंज़्यादा कुछ
उनकी हँसी-खुशीउनकी रुदन-उदासी की डोरी सेनहीं बँधा हूँ मैं
मेरी कहानियों के पात्रवे नहीं हैंउनके गीतों की लय-तानमैं नहीं हूँ
एक खाई हैजो पाटी नहीं गई मुझसेएक सफ़र हैजिसे हम अकेले हीतय करते हैं
आते-जाते हुए अकसर...

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गनेशी की कथा - सुशांत सुप्रिय की कहानी

कहानी की शुरुआत कैसे की जानी चाहिए ? मैं इस कहानी की शुरुआत 'वंस अपान अ टाइम, देयर लिव्ड अ पर्सन नेम्ड गनेशी' वाले अंदाज़ में कर सकता हूँ । या मैं कहानी की शुरुआत तिरछे अक्षरों ( इटैलिक्स ) में लिखे कुछ धमाकेदार वाक्यों से कर सकता हूँ । मसलन --
"नींद और जागने की सीमा-रेखा पर स्थित है यह कहानी । ...

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लौटना - सुशांत सुप्रिय की कहानी

समुद्र का रंग आकाश जैसा था । वह पानी में तैर रही थी । छप्-छप्, छप्-छप् । उसे तैरना कब आया ? उसने तो तैरना कभी नहीं सीखा । फिर यह क्या जादू था ? लहरें उसे गोद में उठाए हुए थीं । एक लहर उसे दूसरी लहर की गोद में सौंप रही थी । दूसरी लहर उसे तीसरी लहर के हवाले कर रही थी । सामने, पीछे, दाएँ, बाएँ दूर ...

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बौड़म दास

बौड़म दास को मैं क़रीब से जानता था । हमारा गाँव चैनपुर भैरवी नदी के किनारे बसा हुआ है । उसके दूसरे किनारे पर बसा है धरहरवा गाँव । साल के बाक़ी समय में यह नदी रिबन जैसी पतली धारा-सी बहती है । पर बरसात का मौसम आते ही यह नदी विकराल रूप धारण कर लेती है । बाढ़ के मौसम में इसका दूसरा किनारा भी नज़र नही...

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भूकम्प

" समय के विराट् वितान में मनुष्य एक क्षुद्र इकाई है । " --- अज्ञात ।
ध्वस्त मकानों के मलबों में हमें एक छेद में से वह दबी हुई लड़की दिखी। जब खोजी कुत्तों ने उसे ढूँढ़ निकाला तब भुवन और मैं अपना माइक और कैमरा लिए खोजी दल के साथ ही थे। धूल-मिट्टी से सने उस लड़की के चेहरे को उसकी विस्फारित आँखें द...

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एक गुम-सी चोट

कैसा समय है यहजब बौने लोग डाल रहे हैंलम्बी परछाइयाँ-- ( अपनी ही डायरी से )
बचपन में मुझे ऊँचाई से, अँधेरे से , छिपकली से, तिलचट्टे से और आवारा कुत्तों से बहुत डर लगता था। उन्हें देखते ही मैं छिप जाता था। डर के मारे मुझे कई बार रात में नींद नहीं आती थी। सर्दियों की रात में भी पसीने से लथपथ मैं बि...

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कुतिया के अंडे

उन दिनों एक मिशन के तहत हम दोनों को शहर के बाहर एक बंगले में रखा गया था - मुझे और मेरे सहयोगी अजय को। दोपहर में सुनीता नाम की बाई आती थी और वह दोपहर और शाम - दोनों समय का खाना एक ही बार में बना जाती थी। उसे और झाड़ू-पोंछे वाली बाई रमा को ख़ुद करकरे साहब ने यहाँ काम पर रखा था। हम लोग केवल करकरे सा...

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सुशांत सुप्रिय का जीवन परिचय