गयाप्रसाद शुक्ल सनेही साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 8

Author Image

दिन अच्छे आने वाले हैं

जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,तो अपने जी में यह समझो,दिन अच्छे आने वाले हैं ।
जब पड़ा विपद का डेरा हो, दुर्घटनाओं ने घेरा हो,काली निशि हो, न सबेरा हो, उर में दुख-दैन्य बसेरा हो,तो अपने जी में यह समझो,दिन अच्छे आने वाले है...

पूरा पढ़ें...

हम स्वेदश के प्राण

प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा,हम स्वदेश के प्राण।आँखों में प्रतिपल रहता है,ह्रदयों में अविचल रहता हैयह है सबल, सबल हैं हम भीइसके बल से बल रहता है,और सबल इसको करना है,करके नव निर्माण।हम स्वदेश के प्राण।यहीं हमें जीना मरना है,हर दम इसका दम भरना है,सम्मुख अगर काल भी आयेचार हाथ उससे करना है,इसकी रक्षा ...

पूरा पढ़ें...

सुभाषचन्द्र

तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लियाकि शक्ति-भक्ति और अमरता का बर लिया ।खादिम लिया न साथ कोई हमसफर लिया,परवा न की किसी की हथेली पर सर लिया ।आया न फिर क़फ़स में चमन से निकल गया ।दिल में वतन बसा के वतन से निकल गया ।।
बाहर निकल के देश के घर-घर में बस गया;जीवट-सा हर जबाने-दिलावर में बस गया ।ताक़त मे...

पूरा पढ़ें...

लड़कपन 

चित्त के चाव, चोचले मन के, वह बिगड़ना घड़ी घड़ी बन के। चैन था, नाम था न चिन्ता का, थे दिवस और ही लड़कपन के॥ 
(2) झूठ जाना, कभी न छल जाना, पाप का पुण्य का न फल जाना। प्रेम वह खेल से, खिलौनों से, चन्द्र तक के लिए मचल जाना॥
(3) चन्द्र था और, और ही तारे,...

पूरा पढ़ें...

सदुपदेश | दोहे

बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव । वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥
निकले फिर पलटत नहीं, रहते अन्त पर्यन्त । सत्पुरुषों के वर-वचन, गजराजों के दन्त ।।२।।
सेवा किये कृतघ्न की, जात सबै मिलि धूल ।। सुधा-धार हू सींचिये, सुफल न देत बबूल ।।३।।
काहू की मुसकानि पर, करियो जनि विश्वास । है समर्थ स...

पूरा पढ़ें...

हिन्दी

अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !हम तुझ पर बलिहारी ! हिन्दी !!सुन्दर स्वच्छ सँवारी हिन्दी । सरल सुबोध सुधारी हिन्दी । हिन्दी की हितकारी हिन्दी । जीवन-ज्योति हमारी हिन्दी ।अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !हम तुझ पर बलिहारी हिन्दी !!
तुलसी सूर कबीर बनाये भारतेन्दु तूने उपजाये, महावीर तेरे मन भाये, राष्...

पूरा पढ़ें...

हैं खाने को कौन

कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को कुछ सोयें अधपेट तरस दाने-दाने कोकुछ तो लें अवतार स्वर्ग का सुख पाने को कुछ आयें बस नरक भोग कर मर जाने को श्रम किसका है, मगर कौन हैं मौज उड़ाते हैं खाने को कौन, कौन उपजा कर लाते?
- त्रिशूल [पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'][1921]
विशेष:  पं. ...

पूरा पढ़ें...

स्वदेश

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
जो जीवित जोश जगा न सका, उस जीवन में कुछ सार नहीं। जो चल न सका संसार-संग, उसका होता संसार नहीं॥ जिसने साहस को छोड़ दिया, वह पहुँच सकेगा पार नहीं। जिससे न जाति-उद्धार हुआ, होगा उसका उद्धार नहीं॥
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रस-धार नही...

पूरा पढ़ें...

गयाप्रसाद शुक्ल सनेही का जीवन परिचय