कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 6

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मेरी कविता

मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ामेरे सुप्त हृदय को जैसे स्मृतियों ने है सहसा चीरा
उर में उठती एक वेदनाहोने लगती सुप्त चेतना
फिर अतीत साकार प्रकट हो उर में करने लगता क्रीडामैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा
मैं अपने में खो जाता हूँएक स्वप्न में सो जाता हूँ
मीरा दिखलायी ...

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ताजमहल

उमड़ा करती है शक्ति, वहीं दिल में है भीषण दाह जहाँहै वहीं बसा सौन्दर्य सदा सुन्दरता की है चाह जहाँ उस दिव्य सुन्दरी के तन मेंउसके कुसुमित मृदु आनन मेंइस रूप राशि के स्वप्नों को देखा करता था शाहजहाँ
वह शाहजहाँ की साम्राज्ञी चलती थी जो नित फूलों मेंथा शाहजहाँ का हृदय बसा जिसकी आँखों के कूलों मेंसहस...

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गिरमिट के समय

दीन दुखी मज़दूरों को लेकर था जिस वक्त जहाज सिधाराचीख पड़े नर नारी, लगी बहने नयनों से विदा-जल-धाराभारत देश रहा छूट अब मिलेगा इन्हें कहीं और सहाराफीजी में आये तो बोल उठे सब आज से है यह देश हमारा
गिरमिट शर्त के नीचे उन्हें करना जो पड़ा वह काम कड़ा थामंगल था लहराने लगा जहां जंगल ही सब ओर खड़ा थाजीवन घात...

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अवसर नहीं मिला

जो कुछ लिखना चाहा थावह लिख न कभी मैं पाया जो कुछ गाना चाहा थावह गीत न मैं गा पाया। मुझको न मिला अवसर हीअपने पथ पर चलने का था दीप पड़ा झोली मेंअवसर न मिला जलने का।जो दीप न जल पाता हैवह क्या प्रकाश फैलाये जिसको न मिला अवसर हीवह गीत भला क्या गाये।
-कमलाप्रसाद मिश्र[फीजी के हिंदी साहित्यकार]

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क्या मैं परदेसी हूँ ?

धवल सिन्ध-तट पर मैं बैठा अपना मानस बहलाता फीजी में पैदा हो कर भी मैं परदेसी कहलाता
यह है गोरी नीति, मुझे सब भारतीय अब भी कहते यद्यपि तन मन धन से मेरा फीजी से ही है नाता
भारत के जीवन से फीजी के जीवन में अन्तर हैभारत कितनी दूर वहाँ पर कौन सदा जाता आता
औपनिवेशिक नीति गरल है, नहीं हमें जीने देती व...

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गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी

गली-गली में घूमे नसेड़ी दुनिया यहाँ मस्तानी गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी।
जिसकी जेब में पैसा नहीं है कोई न पूछे पानीगज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी।
आगे मन्दिर में राम रहे हैं पीछे रहें रामजानी गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी।
गोरी चलावे तिरछी नज़रिया गली-गली दीवानीगजब यह सूवा शहर मेरी रानी।
फीजी का...

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कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra का जीवन परिचय