जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 4

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भारतीय | फीज़ी पर कविता

लम्बे सफर में हम भारतीयों कोकभी पत्थर कभी मिले बबूल
कभी मिट जाती कभी जम जातीइतिहास के दर्पण पर धूल
जिस देश को अपनाया हमनेवह टूट रहा फिर एक बार
चमन यह बिगड़ा इस तरहकाँटे बन रहे सारे फूल
- जोगिन्द्र सिंह कंवल, फीजी
 

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कभी गिरमिट की आई गुलामी

उस समय फीज़ी में तख्तापलट का समय था। फीज़ी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जोगिन्द्र सिंह कंवल फीज़ी की राजनैतिक दशा और फीज़ी के भविष्य को लेकर चिंतित थे, तभी तो उनकी कलम बोल उठी:
कभी गिरमिट की आई गुलामी कभी बाढ़ों ने मार दिया कभी रम्बूका कू कर बैठा कभी स्पेट ने वार किया।
- जोगिन्द्र सिंह क...

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हम लोग | फीज़ी पर कहानी

"बिमल, सोचता हूँ मैं वापस चला जाऊं'', प्रोफेसर महेश कुमार ने निराशा भरे स्वर में कहा ।
मुझे उसके इस सुझाव का कारण पता था । फिर भी जान-बूझकर मैंने प्रश्न किया - "क्यों?"
''कल सूवा में गड़बड़ी हुई है । नैन्दी से कुछ आतंकवादियों ने एयर न्यूज़ीलैंड के विमान को हाइजैक करने की कोशिश की है । अगले सप्...

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सात सागर पार

सात सागर पार करके भी ठिकाना न मिलासौ साल प्यार करके भी निभाना न मिलाकई जनमों से तो बिछड़े थे एक मां से हमदूसरी मां के आंचल में भी सिर छिपाना न मिलापीढ़ियां खेली हैं ऐ देश तेरी गोद मेंफिर भी तेरी ममता का हमें नजराना न मिलाहम ने बंजर धरती में खिला दिए रंगीन फूलतेरी पूजा के लिये दो फूल चढ़ाना न मिलाखून...

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जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी का जीवन परिचय