द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 6

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एक हमारी धरती सबकी

एक हमारी धरती सबकीजिसकी मिट्टी में जन्मे हममिली एक ही धूप हमें हैसींचे गए एक जल से हम।पले हुए हैं झूल-झूल करपलनों में हम एक पवन केहम सब सुमन एक उपवन के।।
रंग रंग के रूप हमारेअलग-अलग है क्यारी-क्यारीलेकिन हम सबसे मिलकर हीइस उपवन की शोभा सारीएक हमारा माली हम सबरहते नीचे एक गगन केहम सब सुमन एक उपवन...

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वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहेध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहींवीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ होतुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहींवीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ होसूर्य से बढ़े चलो च...

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उठो धरा के अमर सपूतो

उठो धरा के अमर सपूतोपुनः नया निर्माण करो।जन-जन के जीवन में फिर सेनई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नया प्रात है, नई बात है,नई किरण है, ज्योति नई।नई उमंगें, नई तरंगे,नई आस है, साँस नई।युग-युग के मुरझे सुमनों में,नई-नई मुसकान भरो।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछनए स्वरों में गाते हैं।गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरेम...

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मूलमंत्र

केवल मन के चाहे से हीमनचाही होती नहीं किसी की।बिना चले कब कहाँ हुई हैमंज़िल पूरी यहाँ किसी की॥
पर्वत की चोटी छूने कोपर्वत पर चढ़ना पड़ता है।सागर से मोती लाने कोगोता खाना ही पड़ता है॥
उद्यम किए बिना तो चींटीभी अपना घर बना न पाती।उद्यम किए बिना न सिंह कोभी अपना शिकार मिल पाता॥
इच्‍छा पूरी हो...

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सत्य की जीत

"अरे ओ दुर्योधन निर्लज्ज!अभी भी यों बढ़-बढ़कर बात।बाल बाँका कर पाया नहींतुम्हारा वीर विश्व-विख्यात॥
किया था उसने भरसक यत्नखींचने को मेरा यह वस्त्र।सत्य के सम्मुख पर टिक सकेदेर तक कब असत्य के शस्त्र॥
जानते तुम इसका न रहस्यहो रहे मादकता में चूर।नग्न अभिलाषाओं के भवनचाहते हो रखना भरपूर॥
स्पृहा रख...

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मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी

मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी गुड़िया खूब सजाई। किस गुड्डे के साथ हुई तय इसकी आज सगाई?
मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी कौन खुशी की बात है!आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी की क्या चढ़ी बरात है?
मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नीगुड़िया गले लगाएआँखों से यों आँसू ये क्यों रह-रह बह-बह जाए!
मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नीक्यों ऐ...

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द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी का जीवन परिचय