उसका नाम मत पूछिये। आज दस वर्ष से उस नाम को हृदय से और उस सूरत को आँखों से दूर करने को पागल हुआ फिरता हूँ। पर वह नाम और वह सूरत सदा मेरे साथ है। मैं डरता हूँ, वह निडर है--मैं रोता हूँ--वह हँसता है--मैं मर जाऊँगा--वह अमर है।
मेरी उसकी कभी की जान पहचान न थी। दिल्ली में हमारी गुप्त सभा थी। सब दल के...
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