'सहजो' कारज जगत के, गुरु बिन पूरे नाहिं । हरि तो गुरु बिन क्या मिलें, समझ देख मन माहि।।
परमेसर सूँ गुरु बड़े, गावत वेद पुराने। ‘सहजो' हरि घर मुक्ति है, गुरु के घर भगवान ।।
'सहजो' यह मन सिलगता, काम-क्रोध की आग । भली भयो गुरु ने दिया, सील छिमी की बाग ।।
ज्ञान दीप सत गुरु दियौ, राख्यौ काया ...
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