भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 11

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सूनापन रातों का | ग़ज़ल

सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता हैटूटे सपने,बिखरे आँसू,कई निशानी देता है
दिल के पन्ने इक-इक करके खुद-ब-खुद खुल जाते हैंहर पन्ने पर लिखकर फिर वो,नई कहानी देता है
उसके आने से ही दिल में,मौसम कई बदलते हैंसूखे बंज़र गलियारों में,रंग वो धानी देता है आँखों में ऐसे ये डोरे,सुर्ख उतर कर आते हैंज...

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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल

फिर नये मौसम की हम बातें करेंसाथ खुशियों, ग़म की हम बातें करें जगमगाते थे दिए भी साथ मेंफिर भला क्यूँ, तम की हम बातें करें
जो दिया, उसने, खुशी से लें उसेफिर ना ज़्यादा, कम की हम बातें करें जो खुशी में भी छलक जाएँ कभीऐसे चश्म-ए-नम की हम बातें करें घाव देने का, ना हम,सोचें कभीघाव पे,मरहम की हम बात...

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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल

झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकतेमुहब्बत डालियों से फिर, कभी वो कर नहीं सकते
कड़ी हो धूप सर पर तो, परिंदे हाँफ जाते हैंतपी धरती पे भी वो पाँव, अपने धर नहीं सकते भरा हो आँसुओं से गर, कहीं भी आग का दरियाबनाकर मोम की कश्ती, कभी तुम तर नहीं सकते भले ही प्यार की मेरी, वो छोटी सी कहानी होलिख...

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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल

बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँजीवन के इस उलझेपन को मैं सुलझाने आई हूँ
पाया जिससे जैसा भी था, मैंने अपने जीवन मेंप्यार का बनकर मैं सौदागर, वो लौटाने आई हूँ
सागर मुझसे पूछ रहा है, नाव मेरी क्यूँ डोल रहीमैं तो लहरों की सरगम पर, ताल लगाने आई हूँ जख्मीं होकर तूफानों से, यहाँ वहाँ मैं गिरत...

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किसी के आँसुओं पर | ग़ज़ल

किसी के आँसुओं पर, ख़्वाब का घर बन नहीं सकताभरी बरसात में फिर, शामियाना तन नहीं सकता
दुआओं का अगर हो हाथ सर पर तो भला डर क्यावो जो खारा समंदर है भला क्यों छन नहीं सकता
भले हालात ने उसको, बना डाला हो आतंकीकि माँ की कोख से तो लाल, ऐसा जन नहीं सकता
लबालब हो गरल से गर, भला फिर भी है क्यूँ डरनाकुचल...

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लम्हा इक छोटा सा फिर | ग़ज़ल

लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गयादिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-क्या ले गया
वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद कीहोठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया
उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रहीउसकी आँखों का ये आँसू जाने क्या कह के गया
प्यार बेमौसम का है बरसात बेमौसम की हैबात बरसों की पुरा...

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कभी तुम दूर जाते हो | ग़ज़ल

कभी तुम दूर जाते हो, कभी तुम पास आते होकभी हमको हँसाते हो, कभी हमको रुलाते हो
हमारे दिल के हर कोने में, रहते हो अगर तुम हीउसे ही तोड़ते हो क्यूँ, जहाँ तुम घर बनाते हो।
बड़ी ऊँचाई पे मंज़िल थी पहुँची मुश्किलों से मैं जरा अब साँस लेने दो अभी से क्यूँ गिराते हो
मैं सोती हूँ बड़ी गहरी, मुझे अब नीं...

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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल

यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले मेंईश के दर पे रख दे सर को, क्यूँ तू पड़े झमेले में
नाखूनों की बाड़ लगी है,उगते जहाँ विरोध बहुतमजबूती से कलम पकड़ ले, खो मत जाना रेले में
खुद को ना भगवान समझ तू , माटी का इक पुतला हैइक दिन यूँ ही मिट जाएगा, जाना वहाँ अकेले में
क्यूँ तू इतना उलझ रहा है...

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किसी की आँख में आँसू | ग़ज़ल

किसी की आँख में आँसू, किसी की आँख में सपनेपराए हैं कहीं घर के, कहीं अनजान भी अपने
बिछाई राह में तुमने, भले शीतल हवाएँ होंपड़े हैं अनगिनत छाले, लगें हैं पाँव भी थकने।
पड़ा जब दुःख भरा साया, कोई भी पास ना आयाहुआ जो नाम उनका तो, लगे दिन रात हैं जपने
तपी धरती पे चलने का, हुनर हमको बहुत है परचले जब...

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अब अँधेरों से लिपटकर | ग़ज़ल

अब अँधेरों से लिपटकर यूँ ना रोया कीजिएहो घड़ी भर के लिए पर, कुछ तो सोया कीजिए
बन्द रहने दो ये आँसू,अपने दिल की सीप मेंकीमती मोती हैं ये, इनको ना खोया कीजिए
यूँ सफर ये जिंदगी का,है बहुत मुश्किल मगरसाथ में मिल के जिए जो, पल सँजोया कीजिए
बंद आँखों में सजे, सपनों के हैं बादल घनेआँसुओं की धार से, उ...

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डॉ भावना कुँअर के हाइकु

अकेला बीजधरती से मिलके फूटा खिलके।
बढ़ने लगा बनकर वो पौधाखिलने लगा।
जैसे ही चढ़ायौवन-दहलीज़आँख में गड़ा।
निर्मम हाथकाटने चल पड़ेआरी ले साथ।
सहता रहा‘मत काटो मुझको’-कहता रहा।
नहीं पसीजे बेरहम मानवकिया तांडव।
न रुके हाथयूँ ही करते गएघात पे घात।
हरा वो पेड़पल भर में...

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भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया का जीवन परिचय