प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 3

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यूँ तो मिलना-जुलना

यूँ तो मिलना-जुलना चलता रहता हैमिलकर उनका जाना खलता रहता है
उसकी आँखों की चौखट पर एक दियाबरसों से दिन-रात ही जलता रहता है
कितने कपड़े रखता है अलमारी मेंजाने कितने रंग बदलता रहता है
सूरज को देखा है पानी में गिरतेगिरकर फिर भी रोज निकलता रहता है
यादों में रह जाते हैं फिर भी ज़िंदाजिन लमहों को वक...

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दिन में जो भी प्यारा | ग़ज़ल

दिन में जो भी प्यारा मंज़र लगता हैअंधियारे में देखो तो डर लगता है
आँगन में कर दीं इतनी दीवार खड़ीअब उन दीवारों पर ही सर लगता है
इतना भटकाया है हमको रस्तों नेअब हर रस्ता ही अपना घर लगता है
कहता है कुछ लेकिन कुछ वो करता हैवो बस बातों का सौदागर लगता है
पहले पहले दर्द का था अहसास बहुतलेकिन अब पहल...

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प्रगीत कुँअर के मुक्तक

वो समय कैसा कि जिसमें आज हो पर कल ना होवो ही रह सकता है स्थिर हो जो पत्थर जल ना होहाथ में लेकर भरा बर्तन ख़ुशी औ ग़म का जबचल रही हो ज़िंदगी कैसे कोई हलचल ना हो
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उन्हें डर था कहीं हम आसमाँ को पार न कर देंइरादों में खड़ी उनके कहीं दीवार न कर देंहमारे साथ बनकर दोस्त वो चलते रहे तब तककि जब तक वो ह...

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प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया का जीवन परिचय