विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 2

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इक अनजाने देश में

इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ,अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ|शुभ्र हिमालय सर हो मेरा,सीना बन जाता विंध्याचल|नीलगिरी घुटने बन जाते,पैर तले तब नीला सागर|दाएँ में कच्छ को भर लेता, बाएँ मिजो भर जाता हूँ,अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ|श्वासों में तब तेरा सम...

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आ जा सुर में सुर मिला

आ जा सुर में सुर मिला ले, यह मेरा ही गीत है,एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।सुर में सुर मिल जाए इतना, सुर अकेला न रहे,मैं भी मेरा न रहूँ और, तू भी तेरा न रहे,धड़कनों के साथ सजता, राग का संगीत है,एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।
नीले-नीले इस गगन में, पंख धर कर उड़ चलें,चल कहीं पतझड़...

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विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया का जीवन परिचय