दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा,धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ !
बहुत बार आई-गई यह दिवालीमगर तम जहाँ था वहीं पर खड़ा है,बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तककफन रात का हर चमन पर पड़ा है,न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटेऊषा को जगाओ, निशा को सुलाओ !दिए से मिटेगा न मन का अँधेराधरा को उठाओ, गगन को झुकाओ !
सृजन श...
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