कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 8

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नन्दा

नन्दा तीन दिन से भूखा था; पेट की ज्वाला से अधमरा!
देखा, सेठ रामलाल मीठे पूड़ों का थाल भरे, देवीकुण्ड पर बन्दर जिमाने जा रहे हैं। गिड़गिड़ाकर उसने कहा- "सेठजी, मैं तीन दिन से भूखा हूँ, जान निकली जा रही है। कुछ पूड़े मुझे भी दीजिए।"
"भूखा है, तो शहर में जाकर माँग, ये हनुमानजी के पूड़े तुझे कैसे द...

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पहचान | लघु-कथा

'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और उसका पूरा-पूरा फल पाऊंगा!'  यह एक ने कहा।
'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और निश्चय ही भगवान उसका पूरा फल मुझे देंगे!'  यह दूसरे ने कहा।
'मैं अपना काम ठीक करुंगा। फल के बारे में सोचना मेरा काम नहीं।'  यह तीसरे ने कहा।
'मैं काम-काज और फल, दोनों के झमे...

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जैसी करनी वैसी भरनी | बोध -कथा

एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुन्दनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवन्त सिंह।
उस दिन रात में कोई बारह बजे रहमानी के मुन्ने पप्पू के पेट में जाने क्या हुआ कि वह दोहरा हो गया और जोर-जोर से रोने लगा। माँ ने बहलाया, बाप ने कन्धों लिया, आपा ने सहलाया, पर वह चुप न हुआ।
उसके...

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ग़नीमत हुई | बोध -कथा

राधारमण हिंदी के यशस्वी लेखक हैं। पत्रों में उनके लेख सम्मान पाते हैं और सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर चर्चा चलती है। रात उनके घर चोरी हो गई। न जाने चोर कब घुसा और उनका एक ट्रंक उठा ले गया - शायद जाग हो गई और उसे बीच में ही भागना पड़ा।
राधारमण बहुत परेशान है। बार-बार उसके मुँह से निकल पड़ता है - ...

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सेठजी | लघु-कथा

''महात्मा गान्धी आ रहे हैं, उनकी 'पर्स' के लिए कुछ आप भी दीजिये सेठजी!''

"बाबूजी, आपके पीछे हर समय खुफिया लगी रहती है, कोई हमारी रिपोर्ट कर देगा, इसलिए हम इस झगड़े में नही पड़ते!''

''मै रात-दिन चन्दा माँग रहा हूँ, जब मुझे ही पुलिस न पी गई, तो रिपोर्ट आपका क्या कर लेगी?''

ज़रा सोचकर हाथ...

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आहुति | लघु-कथा

अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया।
ऋषि ने जब दूसरे दिन नये अंगार पर आहुति अर्पित की तो राख ने पुकारा, "क्या आज मुझसे रुष्ट हो, महाराज?"
ऋषि की करुणा जाग उठी और उन्होंने पात्र को पोंछकर एक आहुति उसे भी अर...

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तीन दृष्टियाँ | बोधकथा

चंपू, गोकुल और वंशी एक महोत्सव में गये।
वहाँ तब तक कोई न आया था। वे आगे की कुर्सियों पर बैठ गये। दर्शक आते गये, बैठते गये, पंडाल भर गया।
उत्सव आरंभ हुआ। संयोजक ने सबका स्वागत किया।
तब आये एक महानुभाव अपनी चमचमाती मोटर में। उत्सव की बहती धारा रुक गयी। उनकी आवभगत में संयोजक और दूसरे लग गये। वह प...

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बड़ा और छोटा | बोधकथा

विशाल वटवृक्ष ने अपनी छाया में इधर-उधर फैले, कुछ छोटे वृक्षों से अभिमान के साथ कहा--"मैं कितना विराट् हूँ और तुम कितने क्षुद्र! मैं अपनी शीतल छाया में सदा तुम्हें आश्रय देता हूँ।"
छोटे वृक्षों ने कहा-- "हाँ, हम क्षुद्र हैं, और तुम विराट हो; पर जानते हो, तुम्हारी यह विराटता हमारा रक्तशोषण करके ही...

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कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' का जीवन परिचय