राजगोपाल सिंह साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 20

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राजगोपाल सिंह | दोहे

बाबुल अब ना होएगी, बहन भाई में जंगडोर तोड़ अनजान पथ, उड़कर चली पतंग
बाबुल हमसे हो गई, आख़िर कैसी भूलक्रेता की हर शर्त जो, तूने करी कबूल
धरती या कि किसान से, हुई किसी से चूकफ़सल के बदले खेत में, लहके है बंदूक
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोररोज़ जगाए है हमें, कान फोड़ता शोर
रोटी-रोज़ी में हुई,...

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मौन ओढ़े हैं सभी | राजगोपाल सिंह का गीत

मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियाँ होंगी ज़रूरराख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर
आज भी आदम की बेटी हंटरों की ज़द में हैहर गिलहरी के बदन पर धारियाँ होंगी ज़रूर
नाम था होठों पे सागर, पर मरुस्थल की हुईउस नदी की कुछ-न-कुछ लाचारियाँ होंगी ज़रूर
हमने ऐसे रंग फूलों पर कभी देखे न थेतितलियों के हाथ में पिच...

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राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें

राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें भी उनके गीतों व दोहों की तरह सराही गई हैं। यहाँ उनकी कुछ ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं।
 
गज़ल
चढ़ते सूरज को लोग जल देंगेजब ढलेगा तो मुड़ के चल देंगे
मोह के वृक्ष मत उगा ये तुझेछाँव देंगे न मीठे फल देंगे
गंदले-गंदले ये ताल ही तो तुम्हेंमुस्कुराते हुए कँवल देंगे
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इन चिराग़ों के | ग़ज़ल

इन चिराग़ों के उजालों पे न जाना, पीपलये भी अब सीख गए आग लगाना, पीपल
जाने क्यूँ कहता है ये सारा ज़माना, पीपलअच्छा होता नहीं आंगन में लगाना पीपल
गाँव में ज़िन्दा है अब भी वो पुराना पीपलकितने गुमनाम परिन्दों का ठिकाना पीपल
ख़ुद में सिमटा है अमीरी का ज़माना, पीपलअपने ही पास रखो अपना ख़ज़ाना, पीपल
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महानगर पर दोहे

अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोररोज़ जगाता है हमें, कान फोड़ता शोर
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की शामलगता है कि अभी-अभी, हुआ युद्ध विश्राम
अद्भुत है अनमोल है, महानगर की रातदूल्हा थानेदार है, चोरों की बारात
-राजगोपाल सिंह (1 जुलाई 1947- 6 अप्रैल 2014 )

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मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल

मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगाशाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा
बो रहा हूँ बीज कुछ सम्वेदनाओं के यहाँख़ुश्बुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा
अपने गीतों को सियासत की ज़ुबां से दूर रखपँखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा
मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मन्ज़िल नहींमैं भी सागर हो गया तो ...

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अजनबी नज़रों से | ग़ज़ल

अजनबी नज़रों से अपने आप को देखा न करआइनों का दोष क्या है? आइने तोड़ा न कर
यह भी मुमकिन है ये बौनों का नगर हो इसलिएछोटे दरवाज़ों की ख़ातिर अपना क़द छोटा न कर
यह सनक तुझको भी पत्थर ही न कर डाले कहींहर किसी पत्थर को पारस जानकर परखा न कर
रात भी गुज़रेगी, कल सूरज भी निकलेगा ज़रूरये अंधेरे चन्द लमहो...

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मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल

मौज-मस्ती के पल भी आएंगेपेड़ होंगे तो फल भी आएंगे
आज की रात मुझको जी ले तूचांद-तारे तो कल भी आएंगे
चाहतें दोस्ती की पैदा कररास्ते तो निकल भी आएंगे
आइने लाए जाएंगे जब तकलोग चेहरे बदल भी आएंगे
अजनबी बादलों से क्या उम्मीदआए तो ले के जल भी आएंगे
- राजगोपाल सिंह

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काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ | ग़ज़ल

काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ नदियों में तैराते रहेजब तलक़ ज़िन्दा रहे बचपन को दुलराते रहे
रात कैसे-कैसे ख्याल आते रहे, जाते रहेघर की दीवारों से जाने क्या-क्या बतियाते रहे
स्वाभिमानी ज़िन्दगी जीने के अपराधी हैं हमसैंकड़ों पत्थर हमारे गिर्द मँडराते रहे
कोई समझे या न समझे वो समझता है हमेंउम्र-भर इस मन को...

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जितने पूजाघर हैं | ग़ज़ल

जितने पूजाघर हैं सबको तोड़ियेआदमी को आदमी से जोड़िये
एक क़तरा भी नहीं है ख़ून काराष्ट्रीयता की देह न निचोड़िये
स्वार्थ में उलझे हैं सारे रहनुमांइनपे अब विश्वास करना छोड़िये
घर में चटखे आइने रखते कहींदूर जाकर फेंकिये या फोड़िये
इक छलावे से अधिक कुछ भी नहींकुर्सियों की ये सियासत छोड़िये
- राजग...

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मक़सद

उनका मक़सद थाआवाज़ को दबानाअग्नि को बुझानासुगंध को क़ैद करना
तुम्हारा मक़सद थाआवाज़ बुलंद करनाअग्नि को हवा देनासुगंध को विस्तार देना
वे कायर थेउन्होंने तुम्हें असमय मारातुम्हारी राख को ठंडा होने से पहले हीप्रवाहित कर दिया जल में
जल नेअग्नि को और भड़का दियातुम्हारी आवाज़ शंखनाद में तबदील हो गईक...

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लूटकर ले जाएंगे | ग़ज़ल

लूटकर ले जाएंगे सब देखते रह जाओगेपत्थरों की वन्दना करने से तुम क्या पाओगे
मांगने से पहले कुछ भी, सोच लो, फिर मांगनाएक चौखट के लिए क्या पेड़ को कटवाओगे
अपने ख़ूनी शौक़ की ख़ातिर हमें ऐ रहबरोतीतरों की भाँति तुम कितना कहो लड़वाओगे
फ़स्ल बंदूकों की खेतों में न बोना दोस्तोरोटियों के नाम पर कल गोलिय...

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बग़ैर बात कोई | ग़ज़ल

बग़ैर बात कोई किसका दुख बँटाता हैवो जानता है मुझे इसलिए रुलाता है
है उसकी उम्र बहुत कम इसलिए शायदवो लम्हे-लम्हे को जीता है गुनगुनाता है
मेरी तन्हाई मुझे हौंसला सा देती हैतन्हा चिराग़ हज़ारों दीये जलाता है
वो दूर हो के भी सबसे क़रीब है मेरेमैं क्या बताऊँ कि क्या उससे मेरा नाता है
वो नम्र मिट्ट...

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आजकल हम लोग ... | ग़ज़ल

आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगेचाबियों वाले खिलौनों की तरह लड़ने लगे
ठूँठ की तरह अकारण ज़िंदगी जीते रहेजब चली आँधी तो पत्तों की तरह लड़ने लगे
कौन सा सत्संग सुनकर आये थे बस्ती के लोगलौटते ही दो क़बीलों की तरह लड़ने लगे
हम फ़कत शतरंज की चालें हैं उनके वास्तेदी ज़रा-सी शह तो मोहरों की तरह लड़...

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तू इतना कमज़ोर न हो

तू इतना कमज़ोर न होतेरे मन में चोर न होजग तुझको पत्थर समझेइतना अधिक कठोर न होबस्ती हो या हो फिर वनपैदा आदमखोर न होसब अपने हैं सब दुश्मनबात न फैले, शोर न होसूरज तम से धुँधलाएऐसी कोई भोर न हो
- राजगोपाल सिंह
 

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ऐसे कुछ और सवालों को | ग़ज़ल

ऐसे कुछ और सवालों को उछाला जायेकिस तरह शूल को शूलों से निकाला जायेफिर चिराग़ों को सलीक़े से जलाना होगातम है जिस छोर, उसी ओर उजाला जायेये ज़रूरी है कि ख़यालों पे जमी काई हटेफिर से तहज़ीब के दरिया को खँगाला जाये फावड़े और कुदालें भी तो ढल सकती हैंअब न इस्पात से ख़ंज़र कोई ढाला जाये-राजगोपाल सि...

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धरती मैया | ग़ज़ल

धरती मैया जैसी माँसच पुरवैया जैसी माँ पापा चरखी की डोरीइक कनकैया जैसी माँतूफ़ानों में लगती हैसबको नैया जैसी माँबाज़ सरीखे सब नातेइक गौरैया जैसी माँ-राजगोपाल सिंह
 

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हंसों के वंशज | गीत

हंसों के वंशज हैं लेकिनकव्वों की कर रहे ग़ुलामीयूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिनहोती देख रहे नीलामीदर्पण जैसे निर्मल मन कोक्यों पत्थर के नाम कर दिया
पाने का लालच क्या जागागाँव की गठरी भी खो बैठेस्वाभिमान, सम्मान सम्पदागिरवी रख कँगले हो बैठेहरा-भरा संसार न जानेक्यों पतझर के नाम कर दिया
-राजगोपाल सिंह...

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सीते! मम् श्वास-सरित सीते

सीते! मम् श्वास-सरित सीतेरीता जीवन कैसे बीते
हमसे कैसा ये अनर्थ हुआकिसलिये लड़ा था महायुद्धसारा श्रम जैसे व्यर्थ हुआपहले ही दुख क्या कम थे सहेदो दिवस चैन से हम न रहेसीते! मम् नेह-निमित सीतेरीता जीवन कैसे बीते
मर्यादाओं की देहरी परतज दिया तुम्हें, मेहंदी की जगहअंगारे रखे हथेली परख़ामोश रहे सब ॠष...

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ज़िंदगी

ज़िंदगी इक ट्रेन हैऔर ये संसारभागते हुए चित्रों कीएक एल्बम
- राजगोपाल सिंह

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राजगोपाल सिंह का जीवन परिचय