रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 11

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मैं दिल्ली हूँ

'मैं दिल्ली हूँ' रामावतार त्यागी की काव्य रचना है जिसमें दिल्ली की काव्यात्मक कहानी है।

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मैं दिल्ली हूँ | एक

मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं ।अपने आँगन में सपनों की, हर ओर कितारें देखीं हैं ॥
मैंने बलशाली राजाओं के, ताज उतरते देखे हैं ।मैंने जीवन की गलियों से तूफ़ान गुज़रते देखे हैं ॥
देखा है; कितनी बार जनम के, हाथों मरघट हार गया ।देखा है; कितनी बार पसीना, मानव का बेकार गया ॥
मैंने ...

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एक भी आँसू न कर बेकार

एक भी आँसू न कर बेकार -जाने कब समंदर मांगने आ जाए!पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,और जिस के पास देने को न कुछ भीएक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,कर स्वयं हर गीत का श्रृंगारजाने देवता को कौनसा भा जाए!
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पणकिन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,आदमी से...

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चाहता हूँ देश की....

मन समर्पित, तन समर्पितऔर यह जीवन समर्पितचाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है, मैं अकिंचनकिन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदनथाल में लाऊँ सजा कर भाल जब भीकर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पितरक्त का कण कण समर्पितचाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
म...

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पुरखों की पुण्य धरोहर

जो फूल चमन पर संकट देख रहा सोतामिट्टी उस को जीवन-भर क्षमा नहीं करती ।
थोड़ा-सा अंधियारा भी उसको काफी हैजो दीप विभाजित मन से शस्त्र उठाता हैजिनके घर मतभेदों पर सुमन नहीं चढ़तेअंधड उनके आगे आते घबराता है ।तूफान देख जिसने दरवाजे बंद किएआधी उसके घर आते हुए नहीं डरती ।
करना चाहे इंसान मगर वह हो न सकेइ...

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मैं दिल्ली हूँ | दो

जब चाहा मैंने तूफ़ानों के, अभिमानों को कुचल दिया ।हँसकर मुरझाई कलियों को, मैंने उपवन में बदल दिया ।।
मुझ पर कितने संकट आए, आए सब रोकर चले गए ।युद्धों के बरसाती बादल, मेरे पग धोकर चले गए ।।
कब मेरी नींव रखी किसने, यह तो मुझको भी याद नहीं ।पूँछू किससे; नाना-नानी, मेरा कोई आबाद नहीं ।।
इतिहास बता...

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मैं दिल्ली हूँ | तीन

गूंजी थी मेरी गलियों में, भोले बचपन की किलकारी ।छूटी थी मेरी गलियों में, चंचल यौवन की पिचकारी ॥
सावन मेरे गलियारों में, झूले पर बैठा आता था ।फागुन मेरे बागीचों में, मदमस्त जवानी लाता था ॥
सूरज की हर मासूम किरण, आकर मुझको दुलराती थी ।आती थी रात सितारों के, गज़रे मुझको पहनाती थी ॥
खुशियाँ हर ओर ...

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तुमने हाँ जिस्म तो... | ग़ज़ल

तुमने हाँ जिस्म तो आपस में बंटे देखे हैं क्या दरख्तों के कहीं हाथ कटे देखे हैं
वो जो आए थे मुहब्बत के पयम्बर बनकर मैंने उनके भी गिरेबान फटे देखे हैं
वो जो दुनिया को बदलने की कसम खाते थे मैंने दीवार से वो लोग सटे देखे हैं
तन पे कपड़ा भी नहीं पेट में रोती भी नहीं फ़िर भी मैदान में कुछ लोग डटे दे...

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वही टूटा हुआ दर्पण

वही टूटा हुआ दर्पण बराबर याद आता हैउदासी और आँसू का स्वयंवर याद आता है
कभी जब जगमगाते दीप गंगा पर टहलते हैंकिसी सुकुमार सपने का मुक़द्दर याद आता है
महल से जब सवालों के सही उत्तर नहीं मिलते मुझे वह गाँव का भीगा हुआ घर याद आता है
सुगन्धित ये चरण, मेरा महक से भर गया आँगन अकेले में मगर रूठा महावर ...

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मैं दिल्ली हूँ | चार

क्यों नाम पड़ा मेरा 'दिल्ली', यह तो कुछ याद न आता है ।पर बचपन से ही दिल्ली, कहकर मझे पुकारा जाता है ॥
इसलिए कि शायद भारत भारत जैसे महादेश का दिल हूँ मैं ।धर्मों की रीति रिवाज़ों की, भाषाओं की महफ़िल हूँ मैं ॥
बारहवीं सदी की याद कभी, जब भी मुझको आ जाती है ।मीठी सी एक चुभन बनकर, सपना जैसा छा जाती...

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मैं दिल्ली हूँ | पाँच

प्राणों से हाथ पड़ा धोना, मेरे कितने ही लालों को ।बच्चों के प्राणों को हरते, देखा शैतानी भालों को ।।
लूटा मुझको; नोचा मुझको, जितना भी जिसके हाथ लगा।रंगीन बहारें बीत गई, किस्मत सोई पतझार जगा ।।
मेरे माथे के भूमर को, गौरी ने आकर तोड़ दिया ।मुझको घायल हिरनी जैसा, केवल रोने को छोड़ दिया ।।
लेकिन ज...

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रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi का जीवन परिचय