जब चाहा मैंने तूफ़ानों के, अभिमानों को कुचल दिया ।हँसकर मुरझाई कलियों को, मैंने उपवन में बदल दिया ।।
मुझ पर कितने संकट आए, आए सब रोकर चले गए ।युद्धों के बरसाती बादल, मेरे पग धोकर चले गए ।।
कब मेरी नींव रखी किसने, यह तो मुझको भी याद नहीं ।पूँछू किससे; नाना-नानी, मेरा कोई आबाद नहीं ।।
इतिहास बता...
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