देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

डॉ शम्भुनाथ तिवारी

डॉ.शम्भुनाथ तिवारी का जन्म 11जुलाई 1962 को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ।

शिक्षा: बी.ए.(इलाहाबाद विश्वविद्यालय-1981), एम.ए.(हिंदी), जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (1988) से प्रथम श्रेणी में प्रथम रहकर स्वर्णपदक प्राप्त । यूजीसी, नई दिल्ली से जे.आर.एफ.(नेट) उत्तीर्ण कर जे.एन.यू. नई दिल्ली से प्रोफेसर नामवर सिंह के निर्देशन में एम.फिल.(1992), एवं पीएच.डी.(1995)

शोधकार्य: यू.जी.सी. की लघुशोध परियोजना के क्रम में राजस्थान का हिंदी बालसाहित्य विषय पर शोधकार्य(2007)।

प्रकाशित कृतियाँ: मिश्रबंधु और हिंदी आलोचना (2005 ), समीक्षाग्रंथ, पंचशील प्रकाशन, जयपुर ( राजस्थान ), मेघदूत के काव्यानुवाद ( 2005 ), समीक्षाग्रंथ, देवनागर प्रकाशन, जयपुर ( राजस्थान ), आधुनिक काव्य ( 2007 ), एम. ए.(दूरस्थ शिक्षा ) के लिए पाठ्यग्रंथ, जैन विश्वभारती संस्थान ( डीम्ड यूनिवर्सिटी ), लाडनूँ ( राजस्थान ), प्राचीन काव्य (2008), एम.ए. (दूरस्थ शिक्षा), के लिए पाठ्यग्रंथ, जैन विश्वभारती (डीम्ड यूनिवर्सिटी ), लाडनूँ ( राजस्थान ), धरती पर चाँद (2008 ), शोध और समीक्षा के विविध आयाम (2013) बालकाव्य संग्रह, हिंदी साहित्य निकेतन (उत्तर प्रदेश), परिंदे की उड़ान (ग़ज़ल संग्रह ) प्रकाशनाधीन।

अन्य प्रकाशन/संपादन:
अभिनव भारती (शोध पत्रिका )अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग की शोध पत्रिका के अंक 2011 का संपादन । अभिनव भारती (शोध पत्रिका के अंक 2010 का सह-संपादन । हिंदी भाषा पर लगातार चार वर्षों तक भाषा परिष्कार नाम से शोधपरक कॉलम प्रकाशित ।हिंदी की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में शोधपरक, समीक्षात्मक लेख, व्यंग्य, कविताएँ,गीत, ग़ज़ल आदि निरंतर प्रकाशित । उर्दू के अनेक मयारी रिसालों में ग़ज़ले ( उर्दू स्क्रिप्ट में ) प्रकाशित । देश की कमोबेश सभी बाल पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । हिंदी-उर्दू के राष्ट्रीय संकलनों में रचनाएँ संकलित ।

अन्य उपलब्धियाँ:
हिंदी के राष्ट्रीय सेमिनार में शोधपत्र प्रस्तुत । दूरदर्शन के उर्दू-हिंदी कार्यक्रमों में रचनाएँ प्रकाशित । आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से कविताएँ / वार्ताएँ प्रकाशित । राजस्थान उर्दू अकादमी के सदस्य के रूप में मनोनयन (2007-2010 )। हिंदी के साथ उर्दू, अँगरेजी, संस्कृत, राजस्थानी का ज्ञान ।

अवार्ड/सम्मान/पुरस्कार:
भारत सरकार के माईनॉरिटी कमीशन द्वारा उर्दू भाषा सर्वेक्षण के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति में सदस्य के रूप में मनोनीत(2014)।
राजस्थान साहित्य अकादमी ,उदयपुर द्वारा वाल साहित्य लेखन के लिए धरती पर चाँद पुस्तक पर शम्भुदयाल सक्सेना पुरस्कार (20110) , सर्जनात्मक संतुष्टि संस्थान ,जोधपुर (राजस्थान ) द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान (2009) ,जिला साहित्कार परिषद,भीलवाड़ा (राजस्थान) द्वारा सर्जन सम्मान(2009) ,विनायक विद्यापीठ,भूणास(राजस्थान) द्वारा साहित्यकार सम्मान(2009),अखिल भारतीय कविपीठ, लखनऊ द्वारा शारदा सम्मान (2007),भारतीय कल्याण परिषद,कानपुर (उत्तर प्रदेश ) द्वारा सम्मानित(2001),हिंदी अकादमी ,दिल्ली द्वारा सम्मान और मेडेल (1988),यू.जी.सी.,नई दिल्ली द्वारा जे.आर.एफ.(जूनियर रिसर्च फेलोशिप) एवार्ड (1988) ।

पूर्व नियुक्तियाँ /पदस्थापन:
अरुणाचल प्रदेश लोकसेवा आयोग से चयनोपरांत जे.एन.गवर्नमेंट कालेज.पासीघाट में लेक्चरर (हिंदी )के रूप में कार्य(1992-1994), मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग, इंदौर से चयन के पश्चात्, शासकीय महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में पदस्थ (1994 -1995), राजस्थान लोकसेवा आयोग से चयन एवं एम.एल.वी.राजकीय महाविद्यालय. भीलवाड़ा (राजस्थान) में लेक्चरर/ एसोशिएट प्रोफेसर के रूप में कार्य (1995-2010) , वर्तमान में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश ) के हिंदी विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत ।

संपर्क:
ए-407 ग्रीनपार्क अपार्टमेंट ,क्वार्सी-एटा वाईपास रोड, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )-202001.
फोन न.- +91-09457436464 / +91-09457436464(M.)

Email: sn.tiwari09@gmail.com / s.tiwariamu@gmail.com

 

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लोग क्या से क्या न जाने हो गए | ग़ज़ल

लोग क्या से क्या न जाने हो गए
आजकल अपने बेगाने हो गए

बेसबब ही रहगुज़र में छोड़ना
दोस्ती के आज माने हो गए

आदमी टुकडों में इतने बँट चुका
सोचिए कितने घराने हो गए

वक्त ने की किसकदर तब्दीलियाँ
जो हकीकत थे फसाने हो गए

प्यार-सच्चाई-शराफत कुछ नहीं
...

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बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या | ग़ज़ल

बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या
अपनी नाकामी का रोना रोना क्या

बेहतर है कि समझें नब्ज़ ज़माने की
वक़्त गया फिर पछताने से होना क्या

भाईचारा -प्यार मुहब्बत नहीं अगर
तब रिश्ते नातों को लेकर ढोना क्या

जिसने जान लिया की दुनिया फ़ानी है
...

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नहीं कुछ भी बताना चाहता है | ग़ज़ल

नहीं कुछ भी बताना चाहता है
भला वह क्या छुपाना चाहता है

तिज़ारत की है जिसने आँसुओं की
वही ख़ुद मुस्कुराना चाहता है

किया है ख़ाक़ जिसने चमन को वो
मुक़म्मल आशियाना चाहता है

हथेली पर सजाकर एक क़तरा
...

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परिंदे की बेज़ुबानी

बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!

कड़कती धूप हो या तेज़ बारिश का ज़माना हो,
क़हर तूफ़ान का हो या बिजलियों का फ़साना हो !
मगर वह बेबसी का ख़ौफ़ मंज़र देखने वाला,
शिकायत क्या करे जिसका दरख़्तों पर ठिकाना हो!
...

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गर धरती पर इतना प्यारा

गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !

बच्चे अगर नहीं होते तो,
घर-घर में वीरानी होती ।
दिल सबका छू लेनेवाली ,
नहीं तोतली बानी होती ।
गली-गली में खेल-खिलौनों,
का, भी कारोबार न होता ।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
...

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नहीं है आदमी की अब | हज़ल

नहीं है आदमी की अब कोई पहचान दिल्ली में
मिली है धूल में कितनों की ऊँची शान दिल्ली में

तलाशो मत मियाँ रिश्ते, बहुत बेदर्द हैं गलियाँ
बड़ी मुश्किल से मिलते है सही इंसान दिल्ली में

शराफ़त से किसी भी भीड़ में होकर खड़े देखो
...

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हौसले मिटते नहीं

हौसले मिटते नहीं अरमाँ बिखर जाने के बाद
मंजिलें मिलती है कब तूफां से डर जाने के बाद

कौन समझेगा कभी उस तैरने वाले का ग़म
डूब जाये जो समंदर पार कर जाने के बाद

आग से जो खेलते हैं वे समझते है कहाँ
...

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कौन यहाँ खुशहाल बिरादर

कौन यहाँ खुशहाल बिरादर
बद-से-बदतर हाल बिरादर

क़दम-क़दम पर काँटे बिखरे
रस्ते-रस्ते ज़ाल बिरादर

किसकी कौन यहाँ पर सुनता
भटको सालों-साल बिरादर

मिल जाएँगे रोज़ दरिंदे
ओढ़े नकली ख़ाल बिरादर

समय नहीं है नेकी करके
...

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उलझे धागों को सुलझाना

उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल है
नफरतवाली आग बुझाना मुश्किल है

जिनकी बुनियादें खुदग़र्ज़ी पर होंगी
ऐसे रिश्तों का चल पाना मुश्किल है

बेहतर है कि खुद को ही तब्दील करें
सारी दुनिया को समझाना मुश्किल है

जिनके दिल में कद्र नहीं इनसानों की
...

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माँ की ममता जग से न्यारी !

माँ की ममता जग से न्यारी !

अगर कभी मैं रूठ गया तो,
माँ ने बहुत स्नेह से सींचा ।
कितनी बड़ी शरारत पर भी,
जिसने कान कभी ना खीँचा ।
उसके मधुर स्नेह से महकी,
मेरे जीवन की फुलवारी ।
माँ की ममता जग से न्यारी !

बिस्तर-बिना सदा जो सोई,
...

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