देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

रोहित कुमार हैप्पी की ग़ज़लें (काव्य)

Print this

Author: भारत दर्शन

रोहित कुमार 'हैप्पी' ने अपना हिंदी लेखन अपने विद्यालय से प्रकाशित होने वाली वार्षिक पत्रिका 'कपिस्थली' से आरंभ किया। पहली रचना लिखी जब वे शायद 7वी या 8वीं के छात्र थे। फिर उसके बाद महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका में लिखते रहे व साथ ही स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं के संपादन में सहयोग देने लगे।

आपकी रचनाएं दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब-केसरी, दैनिक वीर प्रताप, वेब दुनिया, नई दुनिया, पाञ्चजन्य, हरि-गंधा, विश्वमानव, ऑउटलुक, शांति-दूत (फीजी), स्कूप न्यूज, संडे स्टार, वायकॉटो टाइम्स इंडियन टाइम्स, (न्यूज़ीलैंड) जैसे प्रिंट मीडिया में प्रकाशित इत्यादि में प्रकाशित होती रही। इसके अतिरिक्त जी-न्यूज, कम्युनिटी रेडियो, स्थानीय रेडियों, टीवी, डॉयचे वेले (जर्मन), वॉयस ऑव अमेरिका के प्रसारण में योगदान।

1996 में इंटनेट पर विश्व की पहली साहित्यिक पत्रिका, 'भारत-दर्शन' का प्रकाशन आरम्भ किया और इसके साथ ही नियमित रूप से 'लघु-कथा' का प्रकाशन होने लगा।

आइए, रोहित कुमार 'हैप्पी' ग़ज़ल-संग्रह का आनन्द लें।

 

Back

Other articles in this series

हमने कोशिश करके देखी | ग़ज़ल
इस दुनिया के रंग निराले
मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल
खुद ही बनाया | ग़ज़ल
हाथ में हाथ मेरे | ग़ज़ल
आप के एहसान नीचे | ग़ज़ल
झूठ के साए में | ग़ज़ल
हमने किए जो वादे | ग़ज़ल
हमको सपने टूटने का ग़म नहीं | ग़ज़ल
घर-सा पाओ चैन कहीं तो |ग़ज़ल
तेरा हँसना कमाल था साथी | ग़ज़ल
देख लिया ग़ैर को | ग़ज़ल
आँख से सपने चुराने आ गए | ग़ज़ल
क्या मैं गूँगा, बहरा और अंधा हो जाऊं | ग़ज़ल
हम मन में अपने विष कभी घोलते नहीं | ग़ज़ल
ऐसा नहीं कि...
तेरा हाल मुझसे
आप सूरज को जुगनू | ग़ज़ल
मशगूल हो गए वो
Posted By krishan    on Thursday, 19-Nov-2015-06:58
Very nice
 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश