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काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।Article Under This Catagory
कुण्डलिया दिवस - भारत-दर्शन |
त्रिलोक सिंह ठकुरेला साहित्य जगत का परिचित नाम है। उन्होंने लुप्तप्रायः कुण्डलिया छंद के लिए विशेष उद्यम किया है। उन्हीं की प्रेरणा से कुछ साहित्यकार 19 नवंबर को कुण्डलिया दिवस का आयोजन कर रहे हैं। |
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नेता एकम नेता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
नेता एकम नेता |
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डॉo सत्यवान 'सौरभ' के दोहे - डॉo सत्यवान 'सौरभ' |
सास ससुर सेवा करे, बहुएँ करती राज। |
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आप सूरज को जुगनू | ग़ज़ल - रोहित कुमार हैप्पी |
आप सूरज को जुगनू बता दीजिए |
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बड़ी नाज़ुक है डोरी | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
बड़ी नाज़ुक है डोरी साँस की यह |
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सत्य-असत्य में अंतर - शरदेन्दु शुक्ल 'शरद' |
मैंने चवन्नी डाली |
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न संज्ञा, न सर्वनाम - शंभू ठाकुर |
मैं हूँ-- |
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नून-तेल की खोज में - नेतलाल यादव |
सफ़र की पिछली रात |
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मुकरियाँ - गौतम कुमार “सागर” |
चिपटा रहता है दिन भर वो |
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माँ के बाद पिता - विनोद दूबे |
माँ मर गयी तो पिता यूँ हो गए, |
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बचपन बीत रहा है - योगेन्द्र प्रताप मौर्य |
नचा रही मजबूरी यहाँ |
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निःशब्द कविता - डॉ अनीता शर्मा |
उधर गगन में |
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नारी - रति चौबे |
कहते मुझे नारी |
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डॉ दिविक रमेश की पाँच कविताएं - दिविक रमेश |
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वही फिर मुझे याद... - ख़ुमार बाराबंकवी |
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं |
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गँवाई ज़िंदगी जाकर... - मुहम्मद आसिफ अली |
गँवाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी |
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सपनों को संदेसे भेजो - बृज राज किशोर 'राहगीर' |
सपनों को संदेसे भेजो, |
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भाग्य विधाता - मोहित नेगी मुंतज़िर |
कितनी ही मेहनत करके दो जून रोटियां पाते हैं, |
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