संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र सर्वप्रथम माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रुप में नहीं रह गया है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी मूल रचना तीसरी शताब्दी के आस-पास मान्य है। इस ग्रंथ के रचयिता पं. विष्णु शर्मा थे। कहा जाता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी अयु लगभग 80 वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है-
मित्रभेद
मित्रलाभ
संधि- विग्रह
लब्ध प्रणाश
अपरीक्षित कारक
पंचतंत्र की कहानियाँ मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों के विषयों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करती हैं तथा इन सभी विषयों की सीख देती हैं।
पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्यों-पात्रों के अतिरिक्त कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने का प्रयत्न किया गया है। हम यहां कुछ पंचतंत्र की प्रमुख कथाएं प्रकाशित कर रहे हैं।